Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 04
Author(s): Vidyadhar Johrapurkar
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 15
________________ प्रस्तावना १. लेखोंका साधारण परिचय जैन शिलालेख संग्रहके प्रस्तुत चौथे भागमे कुल ६५४ लेख संगृहीत हैं । इन्हें समय के क्रमसे प्रस्तुत किया है। इसमे सन्पूर्व चौथी सदीका १ ( क्र० १) सन्पूर्व तीसरी सदीका १ ( क्र० २), सन्पूर्व पहली सदी के ११ ( क्र० ३ से १३ ) सन् पहली सदोका १ ( क्र० १४ ), दूसरी सदीके ४ ( क्र० १५ से १८ ), पाँचवी सदीका १ ( क्र० १९ ), छठी सदीके दो ( क्र० २० व २१ ), सातवीं सदी के २२ ( क्र० २२ से ४३ ) आठवीं सदीके १० ( क्र० ४४ से ५३ ), नौवीं सदीके २० ( क्र० ५४ से ७३), दसवीं सदीके ४२ ( क्र० ७४ से ११५ ), ग्यारहवीं सदीके ६७ ( क्र० ११६ से १८२ ), बारहवीं सदी के १३४ ( क्र० १८३ से ३१६,) तेरहवी सदीके ७३ ( क्र० ३१७ से ३८९), चौदहवीं सदीके ३० (क्र० ३९० से ४१९ ), पन्द्रहवीं सदी के ३५ ( क्र० ४२० से ४५४ ) सोलहवीं ५०१), सत्रहवीं सदीके १५ ( क्र० ५०२ से ११ ( क्र० ५१७ से ५२७ ), तथा उन्नीसवीं ५३५ ) लेख है । शेष ११९ लेखोका समय सीके ४७ ( क्र० ४५५ से ५१६ ), अठारहवी सदी के सदीके ८ ( क्र० ५२८ से अनिश्चित है । इन ६५४ लेखोंमें राजस्थानके २१, उत्तरप्रदेशके ९, बिहारके ४, बंगालका १, गुजरातके ३, मध्यप्रदेशके १५, उड़ीसा के १६, महाराष्ट्रके ७, आन्ध्र के ४६, मद्रास के ८२, केरलका १ एवं मैसूर प्रदेशके ४४७ लेख है । भाषा की दृष्टिसे इन लेखोका विभाजन इस प्रकार है - प्राकृतके १८, संस्कृतके ८८, हिन्दीके ३, तेलुगुके ८, तमिलके ७७ एवं कन्नडके ४६० ।

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