Book Title: Jain_Satyaprakash 1948 03 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad View full book textPage 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ॐ अहम् ॥ अखिल भारतवर्षीय जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक मुनिसम्मेलन संस्थापित श्री जैनधर्म सत्यप्रकाशक समितिनुं मासिक मुखपत्र श्री जैन सत्य प्रकाश जेशिंगभाईकी वाडी : घीकांटा रोड : अमदावाद (गुजरात) वर्ष १३ । वि. स. २००४ : वीरनि... २४७४ : ७. स. १६४८ ॥ क्रमांक अंक ६ ॥ स शुह ५ : सोमवार : १५भी भायः ॥ १५० ॥प्रत्याख्यानकुलकम् ॥ संपादकः--पू. मुनिमहाराज श्री रमणिकविजयजी काऊण नमुक्कार, सिद्धाणं अट्टकम्ममुक्काणं । भविअजणबोहणत्थं, पगरणमिणमो निसामेह ॥ १ ॥ राईभोअणविरई, दुविहं तिविहेण चउविहेणावि । नवकारसहिअमाई, पच्चक्खाणं विहेऊणं ॥२॥ दिवसस्स जो मुहत्तं, वज्जेज्जा चउव्विई पि आहारं । अवसेसं झुंजतो, मासेण चउत्थयं होइ ॥ ३ ॥ सो तस्स फलगुणेणं, कंचण-मणि-रयणभूसिअसरीरो। दसवाससहस्साइं, दिव्वं देवत्तणं लहइ ॥ ४ ॥ अह पुण जिणवयणं सुणेइ, सदहमाणो करेइ तं चेव । सो पलिओवमकोडी, निरुवसग्गे वसइ सग्गे ॥ ५ ॥ न य पणमइ सो पुरिसो, रायाणं देवयं च अरिहमणो । तिहुअणनमिषं जो नमइ, पच्चक्खइ जो नमुक्कारं ॥६॥ भवसयकोडीदुलहं, जर-मरणठिएण जं जिणक्खाणं । आराहइ अअविग्छ, पच्चक्खइ जो नमुक्कारं ॥७॥ पोरसि छ? चउत्थे (१) काउं कम्मं खवंति जं मुणिणो । तं न हु नारयजीवा, वाससयसहस्सकोडीहिं ॥ ८॥ अंगुढ-मुडिपमुहं, निच्चं पालेइ तह इमं सम्मं ।। तस्स गुणनिवहरंजिअ, जाया परिणयणकज्जेण ॥ ९ ॥ मन्नइ तेण वरेणं, निव्वुइकंता करेइ संके। संकेअपञ्चक्खाणं, वयंति एवं समासेणं ॥ १०॥ For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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