Book Title: Jain_Satyaprakash 1948 03
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad
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१६८ ] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ
[ १५ १३ भीमविजयगणि पोरवाड वंशीय जसवंतसाहकी भार्या जसरंगदेवीके पुत्र थे। आपने सं. १७३५में श्रीपूज्यजीकी आज्ञा पा कर दक्षिण देशकी ओर विहार किया । औरंगाबादमें आपने चातुर्मास किया उस समय वहां बादशाह की ओर से दीवान असतखान शासक था। एक बार उसका पुत्र जुलफकार बीमार हो गया। चिन्तित होकर लोगोंको किसी सयाने ज्योतिष व आयुर्वेदविद् पण्डित को लानेकी आज्ञा दी । शाही पुरुष सुखपाल लेकर उपाश्रय आये और गुरुश्रीसे नवाबके पास चलनेकी प्रार्थना की। भीमविजय और जितविजय दोनों कार्तिक सुदि १५के दिन नवाबसे मिले। नवाब असतखानने कहा-जुलफकारको नाडी देखकर उपचार कीजिये ! भीमविजयजीने उसकी जन्मपत्रिका मंगाकर देखी और मधुर शब्दोंमें कहने लगे-आज दोपहरके पश्चात् ज्वर साफ हो जायगा और जुलफकार आपके साथ बैठ कर खाना खावेगा एवं उसकी स्त्रीके ५ मास का गर्भ है । जब नवाबने खोजेको भेज कर मालूम किया तो पंन्यासजीके कथन पर अत्यन्त विश्वास हो गया। और उनके हस्तकमलको चूम कर बड़ी देर तक वार्तालाप किया एवं नवाब से उनकी घनिष्टता हो गई, मान महत्त्व बढा और लोगोंमें बड़ी प्रतिष्ठा हुई।
सं. १७३६में बादशाह औरंगजेब सदलबल अजमेर पर चढ कर आया। बादशाहका दीवान कुलकुली और उमराव श्रेष्ठ गाजी असतखान भी साथ था। असतखानने भीमविजयजी गणिको याद किया और कठमोरसे आदरपूर्वक शाही पुरुष भेजकर अपने पास बुलाया। पूर्व उपकारोंको स्मरण कर इनके कथनसे बहुतोंके काम निकलवाये । जब श्रीपूज्य श्री विजयप्रभसूरिने भीम विजय की प्रशंसा सुनी तो उन्होंने अवसर देखकर भीमविजयको पत्र लिखा किअजमेर, मेडता, सोजत, जयतारण, जोधपूर आदि स्थानोंके उपाश्रय खालसे हो गये थे वे अब तक छूटे नहीं, अतः तुम अवश्य इस पुण्य कार्य कर सुयशके मागी बनो! मेडताके संघने भी यही प्रार्थना की तब भीमविजयगणि असतखानके पास गये और उनसे धर्मशालादिके विषयमें वार्तालाप किया । नवाब साहबने बादशाहको समझा बुझा कर सब उपाश्रय मुक्त करवाके फरमानपत्र जारी करवा दिये, समस्त संघमें हर्ष उत्साह छा गया। ___ भीमविजयगणिने राणपुर, वरकाणा, आबू , गौडी, खेश्वर प्रमुख तीर्थों को यात्रा की और स्थिरवास करने के लिए कृष्णगढ आए, इस चातुर्मासमें
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