Book Title: Jain_Satyaprakash 1945 06
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ ] જેન-ઈતિહાસમેં કાંગડા [१७३ है "कान पर (बना हुआ) किला"। कहते हैं कि कोट कांगडा जालंधर दैत्यके कान पर बना हुआ है। जालंधर दैत्यकी कथा जिसके नाम पर सारा प्रदेश जालंधर कहलाता है, पद्मपुराणके उत्तर खण्डमें मिलती है। जब जालंधर मर कर गिरा तो उसके कान पर कोट कांगडा बना, मुख पर ज्वालादेवीका मंदिर, पीठ पर जालंधर नगर और पैरों पर मुलतान बसा। __ मेरे विचारमें 'कानगढ' से कांगडा शब्दको उत्पत्ति संतोषजनक नहीं है। यह तो केवल उच्चारण-साम्यके आधार पर लोक-कल्पना प्रतीत होती है। विज्ञप्तित्रिवेणिमें, जिसकी रचना सं. १४८४ में हुई, कोट कांगडेके लिये ' कङ्गदकमहादुर्ग' शब्द आता है। कोट कांगडा दो छोटी २ नदियों-बाणगंगा और मांझी के मध्य उनके संगम पर एक लंबे और तंग पहाडी टीले पर बना हुआ है। कोटकी चहार दीवारीका घेरा दो मीलसे ऊपर है। कोटकी दृढता उसकी रचना पर आश्रित नहीं, बल्कि पहाडी टोलोंके आधार पर है। बाणगंगाकी ओर ये टीले तीन सौ फुट ऊंचे उठते हैं। कोटके अंदर जानेके लिये केवल कांगडा नगरकी ओरसे रास्ता है लेकिन यहां पर नदियोंके मध्यवर्ती भूमि कुछ सौ फुट ही चौडी रह जाती है। इस रास्तेके आरपार कोटको दीवारके नीचे गहरी खाई खुदी हुई है। कोटसे नगर पूर्व की ओर है। कोटके पूर्वभागमें महल, मंदिर आदि बने हुए हैं। यहां सबसे ऊंचे स्थान पर राज-भवन है। इसके कुछ नीचे एक बडा चौक है जिसमें अम्बिका देवो और लक्ष्मीनारायणके मंदिर हैं । इनमेंसे लक्ष्मीनारायणका मंदिर सं० १९६२ के भूकंपमें नष्टभ्रष्ट हो गया । अम्बिका देवीके मंदिरके दक्षिणमें दो छोटे २ जैनमंदिर हैं जिनके द्वार पश्चिमकी ओर हैं। एकमें तो केवल पादपीठ रह गया है जो किसी जिनमूर्तिका होगा। दूसरेमें आदिनाथ भगवान्की बैठी प्रतिमा है। इसके पादपीठ पर एक लेख खुदा हुआ है जो अब मद्धम पड गया है। कनिंघम साहिबने इसमें सं. १५२३ पढा है जो महाराजा संसारचन्द्र प्रथमका समय था। यहां कालीदेवीके मंदिरमें कनिंघम साहिबने एक और लेख देखा था जो अब गुम हो गया है। कनिंघमने उसकी छाप ले ली थी। छापके अनुसार इसके आदिमें खुदा था "ओं स्वस्ति श्री जिनाय नमः" । इसमें सं. १५६६, शक सं. १४१३ का उल्लेख है।' ४. शायद मूलशब्द "काहनगढ" हो । क्यों छ: सौ बरस हुए राजा कहानचंदने किलेमें ऋषभ देवकी मूर्तिकी स्थापना की थी। ५. यह लेख विज्ञप्तित्रिवेणिके पीछेका है । For Private And Personal Use Only

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