Book Title: Jain_Satyaprakash 1945 06
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 34
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ पी. नि. स. 33८ मा देवतादिन पाभ्या. तमनु व्याघ्रापत्य' नामे मात्र तु. मा હકીકત ઉપરથી જાણું શકાય છે કે–તેમને ગૃહવા સ ૧ વર્ષ, સંયમપર્યાય ૬૫ વર્ષ, અથવા યુગપ્રધાન પદવી વિનાને સંયમપર્યાય ૧૭ વર્ષ, યુગપ્રધાનપર્યાય-૪૮ વર્ષ, સર્વાયુ८१ वर्षतुं. ७८ ७८ प्रश्न-श्री छतमा' अथना मनावना यता ? ઉત્તર–પૂજ્ય શ્રી શ્યામાચાર્ય મહારાજના શિષ્ય પૂજ્ય શ્રી સાંડિલ્ય મહારાજે જીતમર્યાદા ગ્રંથ બનાવ્યો', એમ તપાગચ્છ પદાવલી વગેરેમાં જણાવ્યું છે. ૭૯ ૮૦ પ્રશ્ન–શ્રી ચામાચાર્ય મહારાજનો સ્વર્ગવાસ કઈ સાલમાં થયો? ઉત્તર–વીર નિ. સં. ૩૭૬ માં તેમને સ્વર્ગવાસ થયો એમ શ્રી તપાગચ્છપદાવલી योरेभा नव्यु छ. ८०. (या ) 'आर्य वसुधारा के सम्बन्धमें विशेष ज्ञातव्य लेखक-श्रीयुत अगरचन्दजी नाहटा, बीकानेर 'श्री जैन सत्य प्रकाश 'के गतांकमें डॉ. बनारसीदास जैनका "जैनोंमें धारणीपूजा" शीर्षक लेख प्रकाशित हुआ है उसमें 'आर्य वसुधारा' नामक बौद्ध धारणीको प्रतियां जैन भंडारोंमें उपलब्ध हैं उस पर प्रकाश डाला गया है । कई वर्ष पूर्व डॉ. साहबने इसकी प्रतियेंपंजाबके भंडारोंमें उपलब्ध होने पर मेरेसे विशेष ज्ञातव्य पूछा था और मैंने यथाज्ञात सूचनायें दे दी थी। उक्त लेखसे जो कुछ मुझे विशेष ज्ञातव्य है उसे यहां प्रकाशित किया जा रहा है। १. 'आर्य वसुधारा'का मूल बौद्ध पाठ-इसकी एक विशिष्ट प्रति मुझे बीकानेर रियासत वर्ती चुरुकी सुराणा लायब्रेरीमें प्राप्त हुई है जिसमें ६८ पत्र हैं। प्रत्येक पृष्ठमें ४ पंक्तियां हैं। प्रथम पत्रमें उपर नीचेकी दो पंक्तियें स्वर्णाक्षरी एवं मध्यकी रौप्याक्षरी हैं । अक्षर बहुत सुन्दर है। प्रत्येक पंक्तिमें अक्षर नीचे उपरकी पंक्तियोंमें ३८ और मध्य पंक्तियोंमें ३२ अक्षर हैं। अर्थात् ग्रंथाग्रंथ ५७५ के करीब है। पत्र काले रंगके हैं। पीले रंगकी श्याहीसे लिखित होनेसे प्रति बड़ी ही मनोहर दिखलाई देती है। प्रति मेवाडी सं. ८०४ में लिखित है, अर्थात् १६ वीं शताब्दिकी लिखित है। इसकी आदि-अंत प्रशस्ति आदिके संबंधमें हमने अपने " राजपूतानेकी बौद्ध वस्तुएं" शीर्षक लेखमें दिया है, जो कि 'धर्मदूत' के गत दिसम्बरके अंकमें प्रकाशित है। २. जैन भंडारोंमें सबसे प्राचीन प्रति--आर्य वसुधारा'की अद्यावधि मेरे अवलोकनमें करीब ५० प्रतियां आई हैं, जिनमेंसे आधी तो मेरे संग्रहालयमें ही विद्यमान हैं । उन सबमें सं. १५४८ की लिखित हमारे संग्रहकी प्रति ही सबसे प्राचीन है जिसका परिचय इस प्रकार है __ पत्र ३, पंक्ति ८९, प्रतिपंक्ति अक्षर ५६ करीब, अर्थात् ग्रंथाग्रंथ १५५ के करीब है। लेखनप्रशस्ति-" इति श्रीआर्यवसुंधाराधारिणीकल्पः । लिखितश्च ।। संवत् १५४८ वर्षे For Private And Personal Use Only

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