Book Title: Jain Satyaprakash 1940 04 SrNo 57
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્રી જેન સત્ય પ્રકાશ विष ५ पुक्खरवरदीवड्ढे, पुव्वे सिरिविहरमाणतित्थयरं ॥ पडिबोहंत भव्वे, विणया मिपहं वंदे ॥ ४० ॥ सिढे महाविदेहे, पच्छिम पुक्खरवरदधसंबधे ॥ वरपुक्खलावईए, पुंडरगिरिणामणयरीए ॥ ४१ ॥ भूमीपालस्सरमा, भाणुमई तोई वीरसेणसुयं ।। उसहकं णममि पहुं, णाहं तह रायसेणाए ॥ ४२ ॥ वप्पे वरविजयाए, उमंगयं देवसेणकुलदीवं ।। गयलंछणतित्थयरं, णाहं वरसूरिकताए ॥ ४३ ॥ सयलिच्छियप्पयाणे, कप्पयाँ मोहतिमिरभाणुनिहं ॥ णममि महाभ६ पहुं, णिञ्च पुण्णेण हरिलेणं ॥ ४४ ।। वरवच्छसुसीमाए, संवरभूइप्पहाणकुलदीवं ॥ गंगावईइपुत्तं, नाहं पउमावईइ पहुं ।। ४५ ॥ चंदकं देवजसा-तित्थयरं सत्थसत्थवरवयणं ।। पथुणंताणं सिग्धं, हवंति विविहाउ लद्धीओ ॥ ४६ ॥ नलिणावई सुविजए, एवमजोज्झाइ रायपालस्स ॥ कणयावईइपुत्त, नाहं वररयणमालाए ॥ ४७ ॥ संखंकाजियवीरिय,-तित्थयां सिट्टलक्खणड्ढपयं ॥ णासियघाइचउकं. देसकयत्थं पणिवयामि ॥४८॥ तणुवण्णमाणवित्तं, आउकुमारत्तरज्जवरिसाई ।। संजमगुणपज्जाओ, मुणिकेवलिसमणपरिमाणं ॥४९॥ अढण्हं दाराणं, वित्तं सीमंधरस्स कहियं जं ॥ तं सव्वेसिं णेयं, भेओ अट्ठण्हमाईए ॥ ५० ॥ चउरो जंबूदीवे, तित्थयरा अट्ट धायईखंडे ।। पुक्खरवरदीवड्ढे, इय होज्जा वीसतित्थरारा ॥ ५१ ॥ इत्तो चउसयगुणियं, नराइभावाण तत्थ परिमाणं ।। कालस्स हाणिवुड्ढी, जहेह न तहा विदेहम्मि ॥ ५२ ॥ ओसप्पिणीचउत्था-रगाइसमयव्व वा तत्थ ॥ ५४॥ तम्हाऽवट्ठियकालो, विदेहवासम्मि सव्वया भणिओ ।। तत्थ विहरमाणजिणे, थुणामि सञ्चप्पमोएणं ॥ ५४ ।। चउतीसइसयललिए, पणतीसवयणगुणोहलंकरिए ।। भावदयंबुनिहाणे, वंदे सीमंधराइ पहू ॥ ५५ ॥ जो पढइ थुत्त मेयं, निसुणइ भावेइ पुण्णरंगेण ॥ असुहाणं कम्माण, सो कुणए णिज्जरा विउला || ५६ ॥ कार्यकनिहिंदुमिए, वरिसे सोहग्गपंचमीदियहे ॥ सिरिजिणसासणरसिए, जइणउरीरायणयरम्मि ॥ ५७ ॥ [ JI पार्नु २९९ ] For Private And Personal Use Only

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