Book Title: Jain Satyaprakash 1940 04 SrNo 57 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आठों ही लेख अप्रामाणिक हैं लेखक:-मुनि महाराज श्री कल्याणविजयजी “श्री जैन सत्य प्रकाश" (वर्ष ५ अंक ७ पृष्ठ २५४-२५८ ) में “ विद्वानों से आवश्यक प्रश्न" इस हेडिंग के नीचे श्रीयुत पन्नालालजी दूगड जौहरी ने कुछ ऐतिहासिक प्रश्नों की चर्चा करते हुए “ खरतरगच्छ ” शब्दोल्लेखवाले आठ शिलालेख दिये है और पूछा है-" इन आठों लेखों के विषय में विद्वानों से प्रश्न है कि वे इन्हें प्रामाणिक या अप्रामाणिक कैसे मानते हैं ? |" जौहरीजी के इस प्रश्न से सूचित होता है कि आप को भी इन लेखों की प्रामाणिकता के विषय में संदेह है, और होना ही चाहिये। जिसको थोडा भी इतिहास विषयक विचार होगा, इन लेखों को पढ कर यही कहेगा कि ये लेख प्रामाणिक नहीं हो सकते । आठ लेखों में से कठगोला-मुर्शिदाबाद के आदिनाथजी के मन्दिर के ३ और जैतारण के मन्दिर का १, एवं ४ लेख सं. १९८१ की साल के है जो सभी एकसे हैं । भेदमात्र जिननाम का ही है । पांचवां लेख ११६७ के संवत् का है जबकि श्री जिनदत्तसरिजी आचार्यपदारूढ नहीं हुए थे। छठा लेख संवत् ११७१ का और सातवां तथा आठवां दोनों संवत् ११७४ के है। ___ ये लेख मूर्तियों पर खुदे हुए हैं या उनके सिंहासनों पर? और मूर्तियों पर तो पाषाण मूर्तियों पर है या धातुमूर्तियों पर ? इन बातों का परिचय जौहरीजी के लेख से नहि मिलता।। ___ यदि लेख पाषाणमूर्तियों पर खुदे हुए हैं तब तो यह मान लेने में कोई आपत्ति नहीं है कि लेख जाली हैं । क्यों कि तब तक मूर्तियों के मसूरक (मूर्ति की वह संलग्न गद्दी जो मूति के साथ उसी पत्थर के निचले भागसे बनी हुई होती है.) पर लेख खुदवाने का रिवाज नहीं चला था। यह रिवाज विक्रम की पंद्रहवीं सदी से प्रचलित हुआ है। यदि लेख धातु की मूर्तियों पर अथवा पाषाण की मूर्तियों के सिंहासनों पर खुदे हुए हों तब भी इनके जाली होने में कुछ भी संदेह नहीं है। हमारे इस निर्णय की सत्यता नीचे के विवरण से प्रमाणित होगी। १-लेखों की भाषा और शैली स्वयं बतला रही है कि यह बीसवीं सदी के किसी अल्पज्ञ मनुष्य की कृति है। २-'शुदि', 'ब्द' आदि शब्दप्रयोग अर्वाचीनताद्योतक हैं । बाहरवीं सदी में संस्कृत भाषा में ऐसे शब्दप्रयोग नहीं होते थे। For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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