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एक महत्त्वपूर्ण प्रयत्न
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एवं लघुपद्यात्मक कृतियों का विवरण दिया गया है । इस जिल्द मूल ग्रन्थ के ५७६ पृष्ठ हो गये हैं । भूमिका परिशिष्ट आदि को लेकर यह काफी बड़ा ग्रन्थ हो गया है । कुल ९६० पृष्ठों की इस जिल्द का मूल्य १२ रू. रखा गया है । सन १९६८ में इस का प्रकाशन हुआ है ।
तीसरी जिल्द में १५ प्रकरण (३६ से ५० तक) खण्ड का अंश है । इस खण्ड का नाम 'धार्मिक व दार्शनिक' साहित्य रखा गया है । इस में दर्शनमीमांसा, न्याय, योग, अनुष्ठानात्मक साहित्य, मंत्रकल्पादि, खण्डनमण्डन पट्टावली, प्रश्रोत्तर, प्राकृत ग्रन्थों की संस्कृत टीकाएँ, अजैन दार्शनिक ग्रन्थों की दार्शनिक टीकाएँ, उत्कीर्ण लेखसंग्रह आदि का विवरण दिया गया है । यह मूल ग्रन्थ ३७० पृष्ठों का है । परिशिष्ट शुद्धिपत्र आदि लेकर ६०० पृष्ठों से भी बड़ा हो गया है ।
इस तरह जैन संस्कृत साहित्य के सभी अंगो का यथाज्ञात विवरण देकर श्री कापडियाजी ने जैन संस्कृत साहित्य की बहुत अच्छी जानकारी अपने इस बृहत् ग्रन्थ में प्रस्तुत कर दी है । शोधार्थियों और जिज्ञासुओं के लिए यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी जानकारी देनेवाले संदर्भ ग्रन्थरत्न है ।
कापडियाजीने प्राकृत जैन साहित्य और आगमो आदि ग्रन्थों के सम्बन्ध में भी अंग्रेजी और गुजराती में बडे परिश्रम से ग्रन्थ तैयार करके प्रकाशित करवा दिये है । जैन कर्म सम्बन्धी साहित्य पर भी आपका ग्रन्थ छप चूका है । गुजराती जैन साहित्य का इतिहास लिखने की भी उनकी बड़ी इच्छा थी जो अधूरी रह गयी ।
___ अनेक पत्र और पत्रिकाओं में आप के सैंकड़ो महत्त्वपूर्ण लेख प्रकाशित हो चूके है । और बहुत से ग्रन्थों का आपने सुसम्पादन किया है । इसकी एक सूची 'हीरक-साहित्य विहार' के नाम से सन ६० में प्रकाशित हुई थी । उसके बाद तो आपने और बहुतसे लेख लिखे हैं । और 'जैन धर्म प्रकाश, ' 'आत्मानन्द प्रकाश,' 'जैन' आदि पत्र पत्रिकाओं में उनके लेख छपते ही रहते हैं । शतावधानी पं. धीरजलाल शाह से
आयोजित मानतुंग सारस्वत समारोह में आपको अन्य जैन विद्वानों के साथ गत मार्च में सन्मानित किया गया जिसके आप वास्तविक अधिकारी हैं ही ।
श्रीमोहनलाल दलीचंद देशाईने जो वर्षोतक जैन साहित्य की खोज की थी और 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास' और 'जैन गूर्जर कवियों' तीन भाग द्वारा जैन साहित्य का विवरण साहित्य जगत् के समक्ष उपस्थित किया था उसके बाद गुजराती भाषा में जैन साहित्य सम्बन्धी इतनी जानकारी प्रकाश में लाने का श्रेय आपको ही है । यद्यपि आप के लेख अनेक पत्र पत्रिकाओं में छप चुके हैं पर जहां तक उन लेखों का कोई संग्रह ग्रन्थ प्रकाशित नही हो जाय वहां तक उनका ठीक से उपयोग नहीं हो सकता। इस लिए आप के महत्त्वपूर्ण लेखों का संशोधित संग्रह-ग्रन्थ अवश्य ही प्रकाशित करना चाहिये ।
प्रस्तुत 'जैन संस्कृत साहित्य का इतिहास' जैन साहित्य व कलामर्मज्ञ विद्वान् मुनिश्री यशोविजयजी के विशेष प्रयत्न से प्रकाशित हो रहा है । अन्यथा ऐसे ग्रन्थों का प्रकाशन होना भी बड़ा कठिन है । अतः इस सत् प्रयत्न के लिए पूज्य मुनिवर्यं श्री यशोविजयजी भी अनेकानेक साधुवाद के पात्र है । जैन साहित्यप्रेमी
पटका और खरीटकर लाभ उठावें । हिन्दी और अंग्रेजी में भी इस महान ग्रन्थ का अनुवाद प्रकाशित हो । दिगंबर विद्वान भी ऐसे ग्रन्थों को तैयार कर दिगम्बर साहित्य की आवश्यक जानकारी शीघ्र ही प्रकाश में लावें, यही शुभकामना है ।
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