Book Title: Jain Sahitya me Vikar
Author(s): Bechardas Doshi, Tilakvijay
Publisher: Digambar Jain Yuvaksangh

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Page 3
________________ समर्पण परम पूज्य जंगम तीर्थस्वरूप श्रीमद्विजयानन्द सूरीश्रृर (आत्मारामजी) । महाराज ! आपकी ग्रन्थरचना देखने से मुझे प्रतीत हुई है कि आप एक उद्धारक पुरुष थे। यदि आप इस वर्तमानकालमें विद्यमान होते तो अवश्य ही इस गरम हुए लोहेका वाट घड़े बिना न रहते। आप भावाचार्य है, थे और रहेंगे। मेरे लिये तो आप सर्वथा परोक्ष ही रहे हैं तथापि आपकी ग्रन्थरचना में मुग्ध होकर मै यह अपने विचारों की माला आपके करकमलों में समर्पित करता हूँ। चरण सेवक बेचर।

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