Book Title: Jain Sahitya Samaroha Guchha 2
Author(s): Ramanlal C Shah, Kantilal D Kora, Pannalal R Shah, Gulab Dedhiya
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 426
________________ अप्रकाशित प्राकृत शतकत्रय 39 संस्कृत भाषा में है । इसमें भर्तृहरि के अनुसरण पर नीति, वैराग्य एवं श्रृंगार शतक की ही रचना की गयी है । प्राकृत शतकत्रय की एक साथ कोई दूसरी पाण्डुलिपि की सूचना अभी तक प्राप्त नहीं है । अतः इसी उज्जैन भण्डार की पाण्डुलिपि के आधार पर इन तीनों शतकों का संक्षिप्त परिचय यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। १. इंद्रिय शतक : 'इन्द्रिय शतक' नामक पाण्डुलिपियां कई जैन भण्डारों में उपलब्ध हैं। निम्नांकित ग्रन्थ भण्डारों की प्रतियां प्राकृत माषा की हो सकती हैं(१) भण्डारकर ओरियन्टल रिसर्च इन्स्टिट्युट पूना, कलेक्शन नं. पांचवा (१८८४-८७) ग्रन्थ, नं. ११७० । (२) लीबड़ी जैन ग्रन्थ भण्डार, पोथी नं. ५७८ . (३) जैनानन्द ग्रन्थ भण्डार, गोपीपुरा, सूरत, पोथी . १६४८ भीमसी मानेक, बम्बई द्वारा 'प्रकरणरत्नाकर' के भाग चार में एक 'इन्द्रिय पराजय शतक' प्रकाशित हुआ है । यह पुस्तक देखने को नहीं मिली । हो सकता है इसका और प्राकृत इन्द्रियशतक का कोई सम्बन्ध हो । रचनाकार के नाम का उल्लेख कहीं नहीं है ।। 2 (क) 'काव्यमाला' के गुच्छ १३, नं. ६९ में निर्णयसागर प्रेस बम्बई से प्रकाशित । (ख) नाहटा अगरचन्द, 'जैन शतक साहित्य' नामक लेख, गरु गोपालदास बौझ स्मृति ग्रन्थ, सागर, १८६७, पृ. ५२५-५३८ 3. 'जिनरत्नकोश', पृ. ४० 4. वही, पृ. ४०, कान्तिविजयजी का निजी संग्रह, बड़ौदा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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