Book Title: Jain Sahitya Samaroha Guchha 2
Author(s): Ramanlal C Shah, Kantilal D Kora, Pannalal R Shah, Gulab Dedhiya
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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भक्तामर स्तोत्र में भक्ति एवं साहित्य
डॉ. शेखरचन्द्र जैन
जैन साधनापथ के सभी आम्नायों में जिस स्तोत्र का सर्वाधिक श्रद्धा और भक्ति से स्मरण किया जाता है, जिसे पवित्र एवं सिद्धिदाता स्तोत्र माना जाता है - वह है आचार्य मानतुगसूरि रचित 'भक्तामर स्तोत्र'।
अपने इस विषय का प्रतिपादन मैं इस ढंग से करूँगा : प्रारंभ में मैं भक्ति का, साहित्य का. स्तोत्र की रचना की ऐतिहासिकता का एवं आचार्यश्री का संक्षिप्त परिचय कराऊँगा। तत्पश्चात् स्तोत्र के पर्दो के परिप्रेक्ष्य में भक्ति एवं साहित्य की समीक्षा करने का प्रयास करूँगा।
यद्यपि भक्ति और साहित्य के विषय में पृथक से एक-एक गवेषणात्मक लेख प्रस्तुत किया जा सकता है पर यहाँ तो मात्र संक्षिप्त में ही समझेंगे।
भक्ति : जैन ग्रन्थों में भक्ति संबंधी अनेक स्थापनाएँ दृष्टव्य हैं । आचार्य पूज्यपाद के कथनानुसार अहंत परमात्मा, आचार्य, उपाध्याय आदि बहुज्ञानी संतों और जिनवाणी में भावों की विशुद्धिपूर्वक जो अनुराग होता है, वही भक्ति है। जिसमें स्वार्थ, फलाशा, फल नहीं होना चाहिये। भक्त निरंतर आत्मोन्नयन में ही प्रयत्नशील रहता है।
आचार्य कुन्दकुन्दाचार्य ने भक्ति के स्वरूप की चर्चा करते हुए कहा है :
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