Book Title: Jain Sahitya Samaroha Guchha 2
Author(s): Ramanlal C Shah, Kantilal D Kora, Pannalal R Shah, Gulab Dedhiya
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 453
________________ जैन साहित्य समारोह - गुच्छ २ अरहंत के नाम मात्र की चरित्रचर्चा से पापी का समूह नष्ट हो जाता है । जिनेन्द्रदेव का नाम तो सूर्य के समान है जो संसार के प्राणियों का पाप कष्ट रूपी अंधकार सहस्र योजन दूर होने पर भी हर लेता है । जिनेन्द्रदेव के नामस्मरण और पूजन की सर्वाधिक महत्ता तो इसलिये भी है कि वे अपने आराधक को अपने तुल्य बना लेते हैं । अर्थात् भक्त प्रभु की भक्ति करता हुआ कर्म-क्षय द्वारा तीर्थंकर पद तक पहुंचता है । 66 यही तो जैन सिद्धांत की विशेषता भी है और प्रभु की समदृष्टि का प्रतीक भी । आपके दर्शन करने का महत्त्व ही यह है कि चित्त फिर किसी के दर्शन में नहीं लगता । अर्थात् समस्त सरागीदेवों से चित्त हरकर वीतराग में सन्निहित हो जाता है । हे देव ! आपके गुणों की महिमा का गान तो चराचर विश्व में सभी प्राणी करके कृतार्थ होते हैं । रत्नत्रय के धारक आप रूप के ही नहीं चारित्र के भी सुमेरु हैं । आप इतने वीर - अतिवीर हैं कि रूपांगनाएँ अनेक चेष्टाओं से भी आपको किंचित् भी नहीं डिगा सकती । आपने तो अपनी तपस्या के पुरुषार्थ से घातिया कर्म की ४७ प्रकृतियाँ ही नष्ट कर दी 12 सूर्य से भी अधिक ज्योतिर्मय देव ! आपका प्रताप मतिश्रुतावधिमनः पर्याय केवल आदि ज्ञानावरणी कर्मों के आवरण से सर्वथा रहित है । हे जिनेन्द्र ! आपका गुण अद्वितीय है । आपके वचन परस्पर विरोधरहित एवं मिथ्यामार्ग के उन्मूलक हैं । आपका महत्त्व गुणों, स्थिरता के कारण ब्रह्मा-विष्णु एवं महेश से उपर है और ज्ञानलोक से तो तीनों ही लोक प्रकाशित हो रहे हैं । हे देव ! नाम के नाम की महत्ता इसलिये और भी अधिक बढ़ गई है, क्योंकि उसमें नाम अनुसार गुण विद्यमान हैं । आपके स्व पर प्रकाशक कैवल्यज्ञान के आगे समस्त क्षायोपशमिक और क्षायिक ज्ञानों 9 1. (९), 2. (१५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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