Book Title: Jain Sahitya Samaroha Guchha 2
Author(s): Ramanlal C Shah, Kantilal D Kora, Pannalal R Shah, Gulab Dedhiya
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 462
________________ भक्तामर स्तोत्र में भक्ति एवं साहित्य 15 कवि ने उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, व्यतिरेक, व्या जस्तुति, उदाहरण, दृष्टांत, श्लेष अलकारों का विशेष प्रयोग किया है। सौन्दर्य, शक्ति और शील के आगार जिनेन्द्र देव के रूप की तुलना कवि अनेक उपमानों से करता है पर सभी उपमान फीके पड़ जाते है, उनमें कोई न कोई दोष झलक ऊठता है। यद्यपि लौकिक रूप से प्रचलित उपमानों का स्वीकार अवश्य किया पर जिनेन्द्र उन सबसे उपर है । सूर्य, चन्द्र, दीपक, मणि आदि उपमानों के साथ कवि ने जिनेन्द्रदेव की तुलना ब्रह्मा-विष्णु-महेश से करते हुए उनके नाम और गुणों की सर्वक्षता वीतराग में प्रतिष्ठित कर दी है। चूंकि इस स्तोत्र का हर पद किसी न किसी अलकार का उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करता हैपर समयाभाव के कारण हम यहाँ थोड़े से उदाहरण ही प्रस्तुत कर सकेंगे। कवि तीर्थ कर की देह स्वर्गिय सुमेरू सी एव जलप्रपात के प्रतीक स्वरूप दोलायमान शुभ चैवर को प्रस्तुत कर रूपक अलकार की उत्तम योजना करता है। इसी प्रकार छत्रत्रय प्रतिहार्य एवं निर्विकार मासतत्त्व में उत्प्रेक्षा दुन्दुभिप्रतिहार्य का प्रयोग है । उपमा अलकार के अनेक उदारहण हैं पर कवि जिनेन्द्रदेव की उपमा क्षीरसागर में और सरागी देवों की तुलना लवणसमुद्र से करके उनके गुणों पर भी प्रकाश डाल देता है । श्लोक नं. २१ व्याजोक्ति एव विरोधाभास अलंकार का उत्तम उदाहरण है। श्लोक नं. १० में कवि ने भूतनाथ' शब्द पर सुन्दर श्लेष किया है। कवि ने कोयल एवं मृगी आदि उदाहरणां की योजना करके अपने भावों को भाषा में पिरोया है । इलोक न. ६ एव ८ में इस प्रयोग को देखा जा सकता है । सच तो ऐसा लगता है कि मुनि की भक्तिभावना एवं बन्धनमुक्ति स्वयौं उदाहरण या दृष्टांत बन गई है। 2 1. श्लोक ३० (चवरप्रतिहार्य) 2. (३१, ३२ एवं १५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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