Book Title: Jain Sahitya Samaroha Guchha 2
Author(s): Ramanlal C Shah, Kantilal D Kora, Pannalal R Shah, Gulab Dedhiya
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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भक्तामर स्तोत्र में भक्ति एवं साहित्य
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कीथ, बेबर, जैकोबी, विन्टरनित्झ, पं. दुर्गाशंकर शर्मा, गौरीशंकर हीराशंकर ओझा, बलदेव उपाध्याय, भोलाशंकर व्यास जैसे प्रभृत विद्वानों ने इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है । इसका अनुवाद अनेक पश्चिमी भाषाओं में हुआ है । प्रो. विन्टरनित्झ लिखते हैं कि धार्मिक भक्ति एव मांत्रिक शक्ति दोनों ही दृष्टिओं से मानतुंगकृत भक्तामर' एक सर्वाधिक प्रसिद्ध स्तोत्र है । जहाँ तक इसके नाम का सम्बन्ध है वह इसके प्रथम पद के आधार पर प्रचलित हुआ लगता है । 'प्रथम जिनेन्द्रम' के आधार पर आदिनाथ स्तोत्र नाम भी है । __ भक्तामर स्तोत्र की पदसंख्या के विषय में दिगंबर- श्वेतांवर आम्नायों में कुछ मतभेद है । श्वेतांबर आम्नाय में ४४ पद हैं, जब कि दिगंबर आम्नाय में ४८ पद हैं । इस ४८ पदों की दृष्टि से श्वे-आम्नाय में ३२, ३३, ३४ एव ३५ वा पद नहीं हैं जिनमें क्रमशः देवदुन्दुभि, पुष्पवृष्टि, भामंडल एवं दिव्यध्वनि प्रतिहार्यो का वर्णन है । यद्यपि श्वेतांबर आम्नाय में ८ प्रतिहार्यो का स्वीकार है, जिनका कल्याणमंदिर स्तोत्र में स्वीकार है...यहाँ क्यों नहीं ? यह जिज्ञासा होना स्वाभाविक है। जैकोबी ने श्वेतांबर आम्नाय के ४४ पदों में से भी ३९ ठों और ४३ में (दिगंबरों के ४३ में, ४७ वो) पदों को प्रक्षिप्त माना है, जिससे संख्या घटकर ४२ रह जाती है । कुछ प्राचीन हस्तलिखित प्रतियों में ४८ के उपरांत चार-चार श्लोकों के चार विभिन्न गुच्छक भी मिले हैं जो संख्या को ६४ तक पहुँचाते हैं । इस चर्चा से इतना तो सिद्ध होता ही है कि यह स्तोत्र मानतु गाचार्य दवारा रचित है। श्लोकों की संख्या का विवाद हमारा प्रतिपाद्य नहीं है। ... भक्तामार श्लोक के आविर्भाव के विषय में अनेक जनश्रुतियाँ हैं पर सर्वाधिक मान्य जनश्रुति यही है कि धारनरेश ने आचार्य मानतुग 8. 'हिस्ट्री ऑफ इन्डियन लिटरेचर'-प्रा. विन्टर नित्झ
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