Book Title: Jain Sahitya Samaroha Guchha 2
Author(s): Ramanlal C Shah, Kantilal D Kora, Pannalal R Shah, Gulab Dedhiya
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 440
________________ जैन दर्शन में नारी भावना 53 थी । 'भगवती सूत्र' के अनुसार भगवान महावीर से पूछे गये उसके तात्त्विक प्रश्न उसकी सूक्ष्म तर्कशक्ति व तत्त्वज्ञान के परिचायक है । जैन धर्म में नारी का सम्मान और महत्त्व जैन धर्म सदा से उदार रहा है। वहाँ स्त्री-पुरुष, ब्राह्मण-शूद्र का लिंगभेद या वर्णभेद जनित कोई पक्षपात नहीं है । जैन दृष्टि में सृष्टि का प्रारम्भ जुगलिया से माना गया है । इस रूप में नारी को नर के बराबर महत्ता प्रदान की गई है । वैदिक ग्रन्थों में जहाँ स्त्रियों को पढ़ने का अधिकार नहीं है, वहां प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ ने स्वयं अपनी पुत्रियों ब्राह्मी और सुन्दरी का लिपिशास्त्र व अंकगणित का ज्ञान दिया । भगवान ऋषभदेव द्वारा दिये गये ज्ञान के प्रकाश को सर्वप्रथम पुत्रियों ने ही ग्रहण किया । __भगवान बुद्ध की दृष्टि में नारी सम्यक सम्बुद्ध नहीं हो सकती थी, पर महावीर की दृष्टि में नारी केवलज्ञान प्राप्त कर, तीर्थकर रूप में तीथ की स्थापना भी कर सकती है । १९ वे तीर्थकर मल्लिनाथ नारीरूप में ही श्वेताम्बर परम्परा में मान्य है । इस प्रकार नारी साधिका होने के साथ साथ लोक-उपदेशिका और धर्मचक्र प्रवर्तिका भी है। 'उपासक दशांग' सूत्र में दस आदर्श श्रावकों के माध्यम से श्रावकधर्म की सुन्दर विवेचना की गई है । इस सूत्र के अध्ययन से स्पष्ट प्रतिभासित होता है कि जैन दर्शन में पुरुष के समान स्त्री को भी श्रावकधम' अंगीकार करने का पूरा अधिकार है। जब श्रावक आनन्द भगवान महावीर से बारह व्रत ग्रहण कर अपने घर आता है तब आते ही वह अपनी धम पत्नी शिवनन्दा से कहता है : ‘एवं खलु देवाणुप्पिए । मए समणरस भगवओं महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते । से वि म धम्मे में इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए, त गच्छण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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