Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 5 Author(s): Bhujbal Shastri, Minakshi Sundaram Pillai Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi View full book textPage 7
________________ प्राचीन भारत की विमान विद्या प्राचीन भारत की आत्म-विद्या, इसका दार्शनिक विवेक और विचारों की महिमा तथा गरिमा तो सर्व स्वीकृत ही है। पश्चिम देशों के दार्शनिक विचारकों ने इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा के रूप में छोटे-बड़े अनेकों ग्रंथ लिखे हैं । जहाँ भारत अपनी अध्यात्मशिक्षा में जगद्गुरु रहा वहाँ अपनी वैज्ञानिक विद्या, वैभव और समृद्धि में भी अद्वितीय था, यह इतिहाससिद्ध बात है। नालंदा तथा तक्षशिला विश्वविद्यालय इस बात के ज्वलन्त साक्षी हैं। प्राचीन भारत के व्यापारी जब चहुँ ओर देश-देशान्तरों में अपने विकसित विज्ञान से उत्पादित अनेक प्रकार की सामग्री लेकर जाते थे तो उन देशों के निवासी भारत को एक अति विकसित तथा समृद्ध देश स्वीकारते थे और इस देश की ओर खिंचे आते थे। कोलम्बस इसी भारत की खोज में निकला था परन्तु दिशा भूलने के कारण ही उसे अमरीका देश मिला और उसके समीपवर्ती द्वीपों को वह भारत समझा तथा वहाँ के लोगों को 'इण्डियन' और द्वीपों को बाद में पश्चिम भारत (West Indies) पुकारा जाने लगा। उसे अपनी भूल का पता बाद में लगा। इसी भारत को प्राप्त करने किंवा उसके वैभव को लूटने के निमित्त से ही एलेग्जैण्डर और मुहम्मद गोरी तथा गजनी इस ओर आकृष्ट हुए थे। कहने का भाव यह है कि प्राचीन भारत विज्ञान-विद्या तथा कला-कौशल में भी प्रवीणता और पराकाष्ठा को पहुँचा हुआ था। इसकी वस्त्रकलाएँ अदृश्य वस्त्र उत्पन्न करती थीं यानी विश्व में अनुपमेय वस्त्र तैयार करती थीं ये भी ऐतिहासिक बाते हैं। महाराज भोज के काल में भी अनेकों प्रकार की कलाओं, यंत्रों तथा वाहनों का वर्णन प्राप्त होता है । सौ योजन प्रतिघंटा भागने वाला 'अश्व', स्वयं चलने वाला 'पंखा' आदि का भी वर्णन मिलता है। उस समय के उपलब्ध ग्रंथों में यह भी लिखा है कि राजे-महाराजों के पास निजी विमान होते थे । ऋग्वेद ( ८. ९१. ७ तथा १. ११८. १, ४) में खेरथ, खेऽनसः अर्थात् आकाशगामी रथ, या श्येन-बाज पक्षी आदि की गतिवाले आकाशगामी यान बनाने का विधान कई स्थलों में मिलता है। वाल्मीकीय रामायण में लिखा है कि श्रीरामचन्द्र जी रावण पर विजय पाकर, उसके भाई विभीषण तथा अन्य अनेकों मित्रों के साथ में एक ही विशालकाय 'पुष्पक' विमान में बैठकर अयोध्या लौटे थे। रामायण में उक्त घटना निम्नोक्त शब्दों में वर्णित है : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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