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... इस पर क्षण-भेद से वस्तु-भेद-वादी बौद्ध की ओर से यह शङ्का की जाती है कि उक्त प्रकार की प्रतीति की प्रामाणिकता नियत नहीं है क्योंकि दीप-शिखा जो प्रतिक्षण में बदलती रहती है उसकी भी वैसी ही प्रतीति होती है। प्रायः लोग ऐसा कहते पाये जाते हैं कि सूर्यास्त के समय जो दीप-शिखा प्रज्वलित हुई थी वह ज्यों कि त्यों मध्यरात्रि तक जलती रही, इस प्रकार सूर्यास्त समय की और मध्य रात्रि की दीपशिखावों में "सैव इयं दीपशिखा'-वही यह दीपशिखा है, ऐसी प्रतीति का होना सबको मान्य है, पर यह प्रतीति कदापि यथार्थ नहीं मानी जा सकती, क्योंकि सायंकाल और मध्यरात्रि की दीपशिखाओं में भेद है। यदि यह कहें कि उनमें भी भेद नहीं है तो यह प्रश्न उठता है कि जितना तेल और जितनी बत्ती मध्यरात्रि की दीप-शिखा से जलती है उतना तेल और उतनी बत्ती सायंकाल में दीप-शिखा के प्रज्वलित होते ही जल जानी चाहिये, क्योंकि सायंकाल और मध्यरात्रि की दीप-शिखाओं में ऐक्य है, पर ऐसा नहीं होता, अतः उनमें भेद मानना आवश्यक है।
इस शङ्का के उत्तर में नैयायिकों का कथन यह है कि उक्त प्रकार की सब प्रत्यभिज्ञायें प्रामाणिक नहीं हैं, किन्तु जिन वस्तुओं में विरुद्ध धर्मो का सम्बन्ध नहीं है उनके ऐक्य को जो प्रत्यभिज्ञायें ग्रहण करती हैं वे ही प्रामाणिक हैं, विभिन्नकाल की दीपशिखाओं में तेल और बत्ती के विभिन्न भागों की नाशकता है, अर्थात् पहले क्षण की दीपशिखा तेल और बत्ती के जिस भाग का नाश करती है दूसरे क्षण की दीपशिखा उसे नहीं नष्ट करती किन्तु अन्य भाग को नष्ट करती है, इसी से कुछ समय बाद तेल और बत्ती के पूरा जल जाने पर दाह्य आश्रय का नाश हो जाने से दाहक दीप-शिखा का निर्वाण हो जाता है, इस प्रकार बिभिन्न कालिक दीपशिखाओं में उन्हें भिन्न करने वाले परस्पर विरुद्ध धर्म हैं अतः उनके ऐक्य में “सैव इयं दीपशिखा" यह प्रत्यभिज्ञा-प्रमाण नहीं हो सकती, वह तो विभिन्न कालिक दीप-शिखाओं के सादृश्यमूलक गौण एकत्व का ही प्रकाशन करती है।
परन्तु घट, पट आदि वस्तुओं में ऐसे विरुद्ध धर्मों का सम्बन्ध नहीं है। जो घट पहले क्षण में है उसका दूसरे क्षण में अवस्थान मानने में कोई बाधा नहीं है। अतः “सोऽयम्" इस प्रत्यभिज्ञा को विभिन्न कालिक घटादि के ऐक्य में प्रामाणिक मानने में कोई रोक नहीं है। . विभिन्न कालिक वस्तुओं के ऐक्य की सिद्धि के लिये प्रत्यभिज्ञा का प्रत्यक्ष और अनुमान के रूप में उपयोग होता है । जिसको प्रत्यभिज्ञा होती है. उसके लिये तो प्रत्यक्ष के रुप में उसका उपयोग होता है और जिसे वह नहीं होती उसके लिये अनुमान के रूप में उसका उपयोग होता है।
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