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विज्ञानवादी ज्ञेय की ज्ञानभिन्नता का खण्डन करने के उद्देश्य से अवयवी का खण्डन करते हैं । उनका तात्पर्य यह है कि प्रत्यक्ष प्रमाण से अवयवी की सिद्धि होने पर ही उसके द्वारा अनुमान प्रमाण से परमाणु पर्यन्त अवयवों की सिद्धि होती है । एवं अवयवी रूप आधार में ही प्रत्यक्षप्रमाण से गुण, कर्म, तथा जाति की सिद्धि होती है । अतः यदि अवयवी का खण्डन कर दिया जायगा तो किसी भी वस्तु की सिद्धि न होगी। क्योंकि अवयवी के अभाव में प्रत्यक्ष प्रमाण की प्रवृत्ति न होगी और प्रत्यक्ष की प्रवृत्ति न होने पर दूसरे सभी प्रमाण पङ्गु हो जायगे, यतः दूसरे सारे प्रमाण प्रत्यक्ष द्वारा ही प्रवृत्त होते हैं ।
ज्ञान से भिन्न वस्तु की अप्रामाणिकता सिद्ध करने के उद्देश्य से अवयवी के खण्डनार्थ विज्ञानवादी जिस विचारधारा को उपस्थित करते हैं उसमें अवयवी के बारे में ये विकल्प प्राप्त होते हैं ।
ज्ञान से भिन्न तथा अवयवों से उत्पन्न पृथग् द्रव्य माने जाने वाले वृक्ष आदि पदार्थ
(१) स्थूल हैं अथवा (२) अस्थूल, (३) अन्यनिरपेक्ष हैं, अथवा ( ४ ) अन्य - सापेक्ष (५) उत्पत्ति के पूर्व कारण में सत् हैं, अथवा ( ६ ) असत्, (७) परस्पर भिन्न हैं, अथवा (८) परस्पर अभिन्न, ( ९ ) व्यापक हैं अथवा (१०) अव्यापक ?
इनमें कोई भी पक्ष मान्य नहीं हो सकता । जैसे
( १ ) वृक्ष आदि पदार्थ स्थूल हैं - यह बात ठीक नहीं है, क्योंकि वृक्ष को यदि एक स्थूलद्रव्य माना जायगा तो उसमें प्रत्यक्षत्व एवं अप्रत्यक्षत्व आवृतत्व एवं अनावृतत्व, तथा सक्रियत्व एवं निष्क्रियत्व आदि विरुद्ध धर्मों का समावेश प्रसक्त होगा । जैसे वृक्ष के किसी एक भाग पर नेत्र पड़ने पर और दूसरे भाग पर नेत्र न पड़ने पर वृक्ष को एक भाग में प्रत्यक्ष और दूसरे भाग में अप्रत्यक्ष मानना होगा । एवं किसी एक भाग पर किसी प्रकार का आवरण होने पर और अन्य भाग पर उस प्रकार का आवरण न होने पर उसे एक भाग में आवृत और अन्य भाग में अनावृत मानना होगा । इसी प्रकार उसके एक भाग में कम्प होने पर उस भाग में उसे सक्रिय और दूसरे भाग में निष्क्रिय मानना होगा ।
( २ ) वृक्ष आदि पदार्थ अस्थूल हैं - यह बात भी ठीक नहीं है, क्योंकि अस्थूल मानने पर स्थूल रूप से वृक्ष की प्रतीति की अनुपपत्ति तथा अस्थूल रूप से उसकी प्रतीति की आपत्ति होगी ।
( ३ ) वृक्ष आदि पदार्थ अन्यनिरपेक्ष हैं - यह बात भी ठीक नहीं है, क्योंकि उन्हें यदि अन्यनिरपेक्ष माना जायगा तो आकाश के समान अनादि
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