Book Title: Jain Nyaya Khanda Khadyam
Author(s): Yashovijay, Badrinath Shukla
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

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Page 173
________________ ( १५५ ) अर्थो का बोधक होने से द्रव्य शब्द वाक्यरूप भी है और उन अनेक अर्थां से युक्त एक आश्रय का बोधक होने से पदरूप भी है । एवं च शक्तितदवच्छिदयोर्मदातो द्रव्यध्वनेर्नयभिदव विचित्रबोधः । काचित् प्रधानगुणभावकथा क्वचित्तु लोकानुरूपनियतव्यवहारकर्त्री ॥ ६८ ॥ इस पद्य में यह बात बतायी गयी है कि द्रव्य शब्द: की शक्ति और उसके अवच्छेदक भिन्न भिन्न हैं । अतः भिन्न-भिन्न नयों के अनुसार उस शब्द से भिन्नभिन्न प्रकार के बोध हुआ करते हैं। हाँ, यह अवश्य है कि कहीं-कहीं द्रव्य शब्द के प्रतिपाद्य अर्थों में किसी को प्रधान और किसी को गौण मानना पड़ता है । क्योंकि ऐसा माने विना विभिन्न नयों द्वारा विभिन्न अर्थों में आबद्ध ऐसे कई लोकव्यवहार हैं जिनकी उपपत्ति नहीं हो सकती । उदाहरणार्थं जैसे जब यह कहा जाता है कि 'द्रव्य' के अनेक गुण-धर्म तो बदलते रहते हैं पर द्रव्य स्वयं 'स्थिर रहता है' तब स्पष्ट है कि इस कथन में द्रव्य शब्द के उत्पाद और व्ययरूप अर्थ गौण रहते हैं और धौव्यरूप अर्थ प्रधान रहता है । इसी प्रकार जब यह कहा जाता है कि 'द्रव्य प्रतिक्षण कुछ न कुछ बदलता रहता है, अन्यथा किसी समय उसका जो सुस्पष्ट परिवर्तन लक्षित होता है वह नहीं हो सकता' तब इस कथन में द्रव्य शुद्ध का धौव्य अर्थ गौण और उत्पाद एवं व्ययरूप अर्थ प्रधान होता है । } जैनदर्शन में सात नय माने गये है- नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवम्भूत। इनमें प्रथम तीन को द्रव्यार्थिक नय वा सामान्य और अन्तिम चार को पर्यायार्थिक नय वा विशेष नय कहा जाता है । समस्त ज्ञेय तत्त्व को शब्द और अर्थ दो श्रेणियों में विभक्त करने पर उक्त नयों में प्रथम चार को अर्थनय तथा अन्तिम तीन को शब्दनय कहा जाता है । इन नयों के अनुसार द्रब्य शब्द के भिन्न-भिन्न अर्थ होते हैं। नगम और व्यवहार बाहुल्येन उपचार वा आरोप पर निर्भर होते हैं । अतः उन 'अनुसार लक्षणादि के सहयोग से द्रव्य शब्द से द्रव्य का बोध विभिन्न रूपों में 'होता है । अर्थात् कभी केवल उत्पाद, कभी केवल व्यय और कभी केवल प्रोव्यरूप से, एवं कभी किन्हीं दो रूपों से, कभी तीन रूपों से, कभी तीनों के आश्रयरूपसे और कभी तीनों के तादात्म्य रूपसे द्रव्य का बोध द्रव्य शब्द से निष्पन्न होता है । ऋजु सूत्र मुख्यतया वर्तमानग्राही होता है । वर्तमानता उत्पाद और व्यय की ही स्पष्ट है, ध्रौव्य तो उनके बीच अन्तहित सा रहता है । अतः दोनों नयों के 2 Aho ! Shrutgyanam

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