Book Title: Jain Nyaya Khanda Khadyam
Author(s): Yashovijay, Badrinath Shukla
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

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Page 131
________________ ( ११३ ) दिखाई पड़ता है और वायु का आघात पाकर उसी में विलीन हो जाता है, जलराशि से पृथक् उसका अस्तित्व नहीं रह जाता, उसी प्रकार न्यायशास्त्र के मत स्याद्वादसिद्धान्त के ऊपर उसकी ही जैसी मनोरमता धारण किये दृष्टिगोचर होते हैं और अन्त में अनेकान्त वादरूपी वायु से आहत हो उसी में समा जाते हैं, उनका निरयेक्ष प्रामाण्य नहीं रह जाता। . इस कथन का अभिप्राय यह है कि अवयवी के विरुद्ध विभिन्नवादियों से उठाये जाने वाले प्रश्नों, आक्षेपों और सन्देहों का निराकरण न्यायशास्त्र की जिन युक्तियों से किया जाता है उनका बलसंवर्धन तथा अनुप्राणन स्याद्वाद की ओर से उन युक्तियों का विनियोग किया जाना न्याय्य है । और वस्तुस्थिति तो यह है कि स्याद्वाद की सरणि से ही उनका उपयोग सफल भी हो सकता है क्योंकि स्याद्वाद के अनुग्रह से वञ्चित होने पर समस्त मत एकान्तवादी हो जाने से निर्बल, निस्सार और इसीलिए अभिमत पक्ष के साधन एवं समर्थन में अक्षम हो जाते हैं। नाणोरपि प्रतिहतिश्च समानयोगः क्षेमत्वतः किल धियेति न बाह्यमन्तः । योग्या च नास्ति नियतानुपलब्धिरुच्चे. नैरात्म्यमित्युपहतं नयवलिगतैस्ते ॥ ५१ ॥ ज्ञान की सत्ता मानकर जिस प्रकार अवयवी का निराकरण नहीं किया जा सकता उसी प्रकार मूल अवयव परमाणु का भी निराकरण नहीं किया जा सकता क्योंकि ज्ञान और परमाणु के योग-क्षेम समान हैं। अर्थात् जो आपत्तियां वा अनुपपत्तियां परमाणुपक्ष में उठती हैं उस ढंग की आपत्तियां और अनुपप. त्तियां ज्ञानपक्ष में भी उठ सकती हैं तथा ज्ञानपक्ष में उन्हें दूर करने के लिये जिन युक्तियों को अपनाया जा सकता है वे युक्तियां परमाणुपक्ष में भी अपनायी जा सकती हैं । फलतः बाह्य अर्थ का अर्थात् ज्ञान से भिन्न वस्तु का अभाव नहीं सिद्ध हो सकता । नियत अनुपलम्भ के बल से भी बाह्य अर्थ का अभाव नहीं सिद्ध किया जा सकता क्योंकि जो बाह्य अर्थ योग्य अर्थात् प्रत्यक्ष प्रमाण से ग्रहण किये जाने योग्य हैं. जैसे घट, पट आदि उनका यथासमय, उपलम्भ होते रहने के कारण उनका तो नियत अनुपलम्भ होता ही नहीं, हां, जो बाह्य अर्थ अयोग्य हैं अर्थात् जिनमें प्रत्यक्ष प्रमाण से ग्रहण किये जाने की योग्यता ही नहीं है जैसे परमाणु आदि, उनके उपलम्भ की कभी भी सम्भावना न होने के कारण उनका नियत अनुपलम्भ अवश्य होता है, पर उससे उनका अभाव नहीं , सिद्ध हो सकता क्योंकि जैसे घट, पट आदि वस्तुओं के अस्तित्व का लोप हो - ८ न्या० ख० Aho! Shrutgyanam

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