Book Title: Jain Nyaya Khanda Khadyam
Author(s): Yashovijay, Badrinath Shukla
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

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Page 139
________________ ( १२१ ) समुदाय को स्थूलत्व का आश्रय मानना है उसको यदि उसके अङ्गभूत एक-एक परमाणु से भिन्न माना जायगा तो वह अवयवी का समशील हो जायगा और तब उस दशा में अतिरिक्त अवयवी का अस्वीकार युक्तिशून्य हो जायगा और यदि परमाणुसमुदाय को तत्तत् परमाणु से भिन्न न मानकर समुदित परमाणु रूप ही माना जायगा और उन्हें ही स्थूलत्व का आधार माना जायगा, तो वह भी ठीक न होगा क्योंकि समुदित तथा असमुदित परमाणु में भेद न होने के कारण असमुदित परमाणु के समान ही समुदित परमाणु भी स्थूलता का आश्रय न हो सकेंगे । है' यदि यह कहा जाय कि निरन्तर निर्व्यवधान वस्तुओं के अनेक दिग्देशों में आश्रित होने का ही नाम स्थूलता है और वह व्यवधानहीन परमाणुओं में रहती है, तो यह ठीक नहीं है क्योंकि कोई भी एक परमाणु अनेक दिशाओं में एक समय आश्रित नहीं हो सकता । अनेकत्व और अनेक दिग्देशों में आश्रितता ये दोनों मिलकर स्थूलता की संज्ञा प्राप्त करते हैं, यह कथन भी ठीक नहीं हो सकता, क्योंकि ऐसा मानने पर एकत्व और स्थूलता की प्रतीति एक साथ न हो सकेगी, फलतः 'यह एक स्थूल वस्तु इस प्रकार को लोकसिद्ध अनुभूति का उच्छेद हो जायगा, एक एक परमाणु में रहनेवाले एकत्व का अनेक परमाणुओं में आरोप होने से अनेक में भी एकत्व की प्रतीति हो सकती है, यह कल्पना भी तमीचीन नहीं मानी जा सकती क्योंकि स्थूलता जब अनेकत्व घटित है तो उसकी प्रतीति एकत्व के साथ कैसे हो सकती है, कहने का अभिप्राय यह है कि एकत्व और अनेकत्व एक दूसरे के विरोधी हैं अतः उन दोनों की सहप्रतीति आरोपात्मक भी नहीं हो सकती। इसके साथ दूसरी त्रुटि यह भी है कि जब परमाणुसमूह में एकत्व का आरोप होगा तो उसकी अनुभूति एक परमाणु के रूप में ही होगी और उस स्थिति में उसमें स्थूलता की अनुभूति किसी भी प्रकार सम्भव न हो सकेगी, सबसे बड़ी त्रुटि इस कल्पना में यह है कि जिन परमाणुओं में एकत्व और स्थूलता की प्रतीति करनी है उन्हीं को अनेक दिग्देश के रूप में भी ग्रहण करना होगा । फिर एक ही बात हो सकती है, या तो उस परमाणुसमूह को अनेक दिग्देशरूप समझा जाय अथवा उसे अनेक दिग्देश आश्रित अर्थात् स्थूल समझा जाय । क्योंकि वही दिग्देश और वही ' दिग्देशाश्रित दोनों नहीं हो सकता । घटात्मक परमाणुसमूह को भूतलात्मक परमाणसमूह में आश्रित समझने में उक्त बाधा नहीं हो सकती, यह उत्तर भी उचित नहीं हो सकता, क्योंकि एकत्व और स्थूलत्व की प्रतीति जैसे घट में होती है उसी प्रकार भूतल में भी होती है, अतः घट में उक्त रीति से तथाकथित स्थूलता की प्रतीति की उपपत्ति कर सकने पर भी Aho ! Shrutgyanam

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