Book Title: Jain Nibandh Ratnakar
Author(s): Kasturchand J Gadiya
Publisher: Kasturchand J Gadiya

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Page 6
________________ इस जैन निबन्ध रत्नाकर की तैयारी मे लगा। मेरे परम पूज्य मुनिजनों ने व श्रावक भाइयोने हमारी प्रार्थना स्वीकार कर अपनी रसीली लेखनी से निबन्ध भेजना आरंभ किया, बस सामग्री तैयार कर पुस्तक के छपाने का कार्य प्रारंभ किया। हां इस स्थानपर मुझे यह कह देना होगा कि हिन्दी जैन का कार्यशुरू हुआ तभीसे यह सेवक अकेलाही काम करने वालाथा। सभी कामका भार मेरेपर था तथापि पेपर को टाइमपर निकाल कर पुस्तक की तैयारी मे भी लगा रहा। इसी कारणसे पुस्तक में अशुद्धियां रहगई हैं। इसका एक कारण यह भी है कि पुस्तक की छपाई का काम अहमदाबाद में होने से इधर उधर प्रूफ आनेजाने में भी कई गल्तियां प्रेसवालो की तरफ से रहगई वास्ते पाठकों से क्षमाका प्रार्थी हूं। उपहार की पुस्तकके छपने में देरी होने का यह कारण हुआ कि दो चार लेख बहुत देर से मिले । कितने ही लेखोका और भी आना सम्भव था पर अधिक विलम्ब होने के कारण उनकी आशा छोड़ इतने ही छाप कर यह पुस्तक आप की सेवामे हाजिर की है । हां जो लेख इस मेन लिये गये वे यथा साध्य द्वितीय भाग में प्रका-- शित करने का प्रयास करूंगा। ___“जिन २ महाशयोंने निवन्ध भेज कर मेरे उत्साह को बढ़ाया उनको मैं हार्दिक धन्यवाद देता हूं। आशा है कि इसी प्रकार सर्व जैन बन्धु मदत दे कृतार्थ करेंगे। श्रीसंघ का दास, कस्तरचन्द जवरचन्द गादिया । सम्पादक हिन्दी जैन..

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