Book Title: Jain Mudra Yog Ki Vaigyanik Evam Adhunik Samiksha
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 12
________________ x... जैन मुद्रा योग की वैज्ञानिक एवं आधुनिक समीक्षा पूर्वी भारत में आप बंगाल के हैं। आपके द्वार पर आने वाला व्यक्ति कभी भी हताश या निराश होकर नहीं लौटता। समाज उत्थान आपका व्यसन है। स्कूल, हॉस्पीटल, मन्दिर, उपाश्रय आदि के निर्माण में आपका सहयोग दाताओं में शीर्षस्थ पर रहता है। व्यावहारिक दक्षता के साथ आध्यात्मिक उच्चता पाने हेतु आप सदा गतिशील रहते हैं। व्यापारिक एवं सामाजिक जिम्मेदारियों के बावजूद भी अपने दैनिक नियमों में एकदम चुस्त हैं। विदेश यात्रा आदि में भी पूजा हेतु जिनप्रतिमा अपने साथ रखते हैं। जमीकंद आदि अभक्ष्य पदार्थों का उपयोग आपके घर में ही नहीं होता। आपका आचरण पूर्ण रूपेण एक धर्मनिष्ठ श्रावक के लिए अनुकरणीय है। आप सजोड़े 16 उपवास, 10 सजोरो से उपवास, अट्ठाई आदि तपस्या भी कर चुके हैं। अपने इस सुसंस्कृत जीवन का प्रमुख श्रेय आप अपने माता-पिता एवं आचार्य श्री पद्मसागर सूरीश्वरजी म.सा. को देते हैं। तारा बाई कांकरिया का मार्गदर्शन भी आपके जीवन में अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहा है। बंगाल में पधारने वाले प्रायः साधु-साध्वीजी की सेवा हेतु आप उनके सतत संपर्क में भी रहते हैं। आचार्यश्री एवं पूज्य गुरुवर्याश्री की निश्रा में अजिमगंज छ:रि पालित संघ यात्रा का भव्य आयोजन एवं Train द्वारा आयोजित पालीताणा, शंखेश्वर आदि संघ यात्रा के भी आप गुरुवर के आशीर्वाद रहा है। धर्म कार्यों के प्रति सर्वात्मना समर्पित होने पर भी आप पदलिप्सा आदि से अत्यन्त दूर रहते हैं। Name and Fame दोनों से ही मुक्त रहकर गुप्त सेवा को आप अधिक श्रेयस्कर मानते हैं। नारी को सदा प्रेरणादीप के समान माना गया है। वह अपने प्रकाश से आस-पास रहने वाले हर व्यक्ति को सही दिशा प्रदान करती है। श्रीमती अपराजिताजी बैद एक ऐसी ही गुण संपन्न महिला है। आपकी दीर्घ दृष्टि, औदार्य वृत्ति, निश्छल प्रेम, अगाध वात्सल्य आदि से मात्र बैद परिवार ही नहीं अपितु सम्पूर्ण संघ-समाज लाभान्वित होता रहता है। इसी कारण इस अल्पवय में कई लोग आपको संघ माता भी कहते हैं। सोनाचंदजी के जीवन में आप दीपक की बॉति के समान स्थान रखती हैं। श्री सोनाचंदजी

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