Book Title: Jain Mandiro ki Prachinta aur Mathura ka Kankali Tila Author(s): Gyansundar Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala View full book textPage 4
________________ SE-2-2-2-2-22-2--2e-era प्रकाशक श्री रत्नप्रभाकर ज्ञानपुष्पमाला o मु. फलोदी (मारवाड़) Z------e-e-ee-es Preere पूज्यपाद इतिहासप्रेमी मुनि श्री ज्ञानसुन्दरजी और गुणसुन्दरजी महाराज साहिब वा वि० सं० १९९४ का चातुर्मास सोजत नगर में हुआ। व्याख्यानमें महाप्रभाविक सूत्र श्री भगवतीजी वंचने का निर्णय होने पर श्रीमान् सम्पतराजजी भंडारी (वकील)ने १०५मण घृत की बोली बोल कर श्री सूत्रजो को अपने मकान पर ले गये । वहां पूजा प्रभावना रात्रि जाग. रण हुई और आसाढ़ सुदि ५ को बड़े ही समारोह से मय बैंड बाजा और नकारा निशानादि लवाजमा के साथ वरघोडा चढ़ा कर सूत्रजी को लाकर गुरु महाराज के कर क पलों में अपंग किया। तत्पश्चात् भंडारीजी ने श्री संघ के साथ ज्ञान पूजा की जिसका द्रव्य करीब ४००) आया। यह पुस्तकें छपवाने में लगाने का श्री संघ से निश्चय हुआ जिसकी यह दूसरी किताब छपी है। O.००००००००००००००००००००००000000000000000000 ((.0.:०००.Do... .....000000 मुद्रक शम्भूसिंह भाटी आदर्श प्रेस, अजमेर में मुद्रित ' ७००००००००००००००००००००........nooni Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34