Book Title: Jain Mandiro ki Prachinta aur Mathura ka Kankali Tila
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 16
________________ ( १२ ) के इतिहास पर अच्छा प्रभाव पड़ता है अर्थात् जिनसे बहुत कुछ जानने को मिल सकता है। २-श्वेताम्बर जैनों के एक विशाल मन्दिर के ३४ टुकड़े हैं और वे हविष्क राजा के समय के हैं । ३-महावीर की एक मूर्ति है उसे २३ तीर्थङ्करों को मूर्तियां घेर कर बैठी हैं जिसे जैन चौबीसो कहते हैं। ४-संवत १०३६ और ११३४ की बनी हुई पद्मप्रभ की दो मूर्तियाँ हैं। ५-ई० सन् के पहिली शताब्दी को बनी हुई बोधि सत्व, अमोघसिद्धार्थ की एक मूर्ति है। ६-बुद्ध की दश मूत्तिएँ लेख सहित हैं। ७-नर्तकी के पूरे कद की मर्ति सहित एक खंभ है । ८-चार फुट व्यास का एक बहुत ही अच्छा पत्थर का छत्र (छत्ता) है। इस प्रकार इस टीला का खोद काम करवाने पर भूगर्भ से जैन एवं बौद्ध दोनों धर्म से सम्बन्ध रखने वाली बहुत सी चीजें निकली हैं। अतएव यह निःशक है कि किसी समय मथुरा में जैन और बौद्ध एवं दोनों धर्मों का बड़ा प्राबल्य रहा था। ई. सं० १८८९-९० में जब जैन स्तूप और दिगम्बर जैनियों के मन्दिर की खुदाई का काम हुआ तब ८० मूर्तिएँ जैन तीर्थङ्करों की निकली और उनके साथ ही १२० टुकड़े जो पत्थर की पट्टियों के थे निकले और उन पर बहुत से शिलालेख भी मिले। उन प्राप्त शिलालेखों में १७ शिलालेख तो बहुत पुराणे हैं। सबसे अधिक खुदाई का काम ई० सं० १८९०-९१ में हुआ और इन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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