Book Title: Jain Mandiro ki Prachinta aur Mathura ka Kankali Tila
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 24
________________ ( १८ ) जाता है कि वे एक हाथ में रजोहर्णा और दूसरे हाथ में मुंहपत्ती रखते थे) ६-नर्तकी-यह एक नर्तकी की मूर्ति है अर्द्ध दिगम्बरावस्था में यह एक दिगम्बर बालिका के ऊपर खड़ी हुई है । ७-खंभे-कंकाली टीला से कई प्रकार के खंभे निकले हैं। बनाने वालों ने उन पर बहुत ही सुन्दर काम करने में कुछ भी कसर उठा नहीं रक्खी है। वे खंभे एक से एक बढ़ कर कारीगरी वाले हैं । उनको प्रत्यक्ष देखने से ही उनकी सुन्दरता का अनुभव हो सकता है। ८-पाटव के खंभे-इन पर अजब अजब तरह की मूर्तियाँ खुदी हुई हैं। मूर्तियों में विशेष कर वस्त्र विरहित स्त्रियों की मूर्तियाँ अधिक हैं। एक स्त्री अद्भुत जीव के ऊपर खड़ी है। वह जीव मनुष्य और बन्दर की शकल का है । उसका पेट बहुत बड़ा है। कमर में जांघिया सा पहना हुआ है। ९-जिन तीर्थङ्कर की एक पूरे कद की मूर्ति-इसका उपरि भाग दाहिनी तरफ से थोड़ा सा टूट गया है शेष मूर्ति अखंडित है। नेत्रों को निमीलित किए हुए पद्मासन में अधिष्ठित इस मूर्ति को देख कर हृदय में भक्ति का भाव सहज ही में उमड़ उठता है मर्ति के ध्यानस्थ आकार से गंभीर और पूज्य भाव टपक पड़ता है। - १०-तीर्थङ्कर की एक मति-यह मर्ति भी पद्मासन में ध्यानस्थ बैठी है। इसके नीचे एक शिलालेख है जिसमें सं० १०३८ (ई० सन् ९८१) खुदा हुआ है । मथुरा के जैन श्वेताम्बरों ने इस मूर्ति की स्थापना की थी। मुहम्मद गजनी ने ई. सं. २०१८ में मथुरा को ध्वंस किया था। वह मूर्ति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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