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( २० ) "नमे स्तीर्थ कृत स्तीर्थे, वर्षे द्विक चतुष्टये । आषाढ श्रावको गौड़ोऽकारयत् प्रतिमा त्रयम्॥"
तत्व निर्णयप्रसाद पृष्ट ५३४ अर्थात् इक्कीसवें तीर्थङ्कर श्री नमिनाथ के २२२२ वर्षों के बाद गौड़ देश के आषाढ़ नामक श्रावक ने तीन मूर्तियाँ बनवाकर प्रतिष्ठा करवाई थी, जिनमें एक चारूप नगर में, एक श्रीपत्तन में
और एक स्तंभनतीर्थ में विराजमान की । इन प्रतिमाओं का समय प्रायः पांच लाख वर्षों का है।
२-उत्तर भारत में खोद काम करवाने से वहां के भूगर्भ में से कई सिक्के मिले हैं। जिनमें कितनेक सिक्कों पर चैत्य का चिह्न है । जैसे कि वर्तमान निजाम स्टेट के सिक्कों पर मसजिद का चिह्न है । उत्तर भारत में मिले हुए सिक्कों के ब्लॉक श्रीमान त्रिभुवनदास लहरचन्द बड़ोदा वाला ने बनवा कर अपने "भारतवर्ष का प्राचीन इतिहास" भाग दूसरे के पृष्ठ १३२ पर दिये हैं। इससे पाया जाता है कि उस समय धर्म कार्यों में मन्दिर मूर्तियों का स्थान मुख्य था । और भूमि पर तो क्या परन्तु चलनी सिक्कों पर भी मन्दिरों के चिह्न अंकित करवा दिये जात थे।
३-तक्षशिला के पास अंग्रेजों ने खुदाई का काम करवाया था। जिसमें भूमि में से एक नगर निकला, जिसे आज कल "मोहन जाडरों" कहते हैं । और उस नगर में से करीब ५००० वर्षों की प्राचीन ध्यानावस्थित एक मूर्ति उपलब्धि हुई है।
४-सिन्ध और पञ्जाब की सरहद पर भूमि से एक नगर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com