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गीतार्थ आचार्य हुए हैं और इन २००० वर्षों में गच्छ गच्छान्तर, मत मतान्तर भी कई निकले परन्तु मन्दिर मूर्तियों की सेवा पूजा व भक्ति के लिये किसी एक ने भी इन्कार नहीं किया, प्रत्युत सभी ने धार्मिक कार्यों में मन्दिर मर्तियों को सर्वोच्च आसन दिया है। अतएव सर्व साधारण के आत्मकल्याण के लिए अन्यान्य साधनों में मन्दिर मूर्ति भी मुख्य साधन हैं। इनके द्वारा प्रत्येक मनुष्य अपना कल्याण कर सकता है। इतना ही क्यों पर मैं तो दावे के साथ जोर देकर यहाँ तक कह सकता हूँ, कि मुमुक्षुओं का यह सर्व प्रथम कर्तव्य है कि वे जैन मन्दिर मूर्तियों को वन्दन पूजन कर तीर्थकरों की अवश्य आराधना करें।
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