Book Title: Jain Mandiro ki Prachinta aur Mathura ka Kankali Tila
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratna Prabhakar Gyan Pushpamala

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Page 11
________________ ( ७ ) ( ३ ) हेमवन्त पट्टावलि से ज्ञात होता है कि आचार्य स्कन्दलसूरि के समय जो मथुरा में सभा हुई थी, उस समय मथुरा निवासी ओसवंशी श्रावक पोलाक ने कई सूत्र अपने द्रव्य से लिखवा कर जैनाचार्यों को और ज्ञानभण्डारों को अर्पण किये थे । (४) कल्पसूत्रादि पट्टावलि प्रन्थों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि जैन श्वेताम्बर समुदाय में कई गण शाखाएँ निकलीं उनमें एक माथुरी शाखा भी निकली जो मथुरा नगरी से उत्पन्न हुई थी। (५) मथुरा में एक नन्न नाम का भट्ट बड़ा भारी विद्वान् था । एक समय कोरंट गच्छीय सर्वदेवसूरि वहाँ पधारे और सर्वदेवसूरि तथा नन्न भट्ट के आपस में धर्म विषयक शास्त्रार्थं हुआ । अन्त में नन्न भट्ट ने जैनधर्म को सच्चा आत्म कल्याण करने वाला धर्म समझ श्राचार्य श्री के चरण कमलों में भगवती जैन दीक्षा को स्वीकार करली। और क्रमशः वे जैन शास्त्रों का अभ्यास कर आचार्य हुए और मथुरा के आस पास के प्रदेशों में भ्रमण कर बहुत से लोगों को जैन धर्म की शिक्षा दीक्षा देकर जैनधर्म का खूब प्रचार किया । ( ६ ) दिगम्बर जैनों में एक माथुर नामक संघ है । उसकी उत्पत्ति मथुरा से हुई और इस संघ के कई आचायों ने मथुरा में रह कर अनेक ग्रंथों का निर्माण भी किया । ऐसा उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में मिलता है । ( ७ ) जैनों में ७४ ॥ शाह हुए हैं जिनमें नागदत्त नामक श्रेष्टी (ओसवाल ) विक्रम की दूसरी शताब्दी में मथुरा नगरी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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