Book Title: Jain Journal 1938 01 to 12
Author(s): Jain Bhawan Publication
Publisher: Jain Bhawan Publication

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Page 12
________________ मथुराकी एक विशेष प्रतिमा लेखक-श्रीयुत वासुदेवशरण अग्रवाल, एम ए. क्युरेटर-मथुरा म्युजियम मथुरा जैन पुरातत्त्व की खान है। यहां को अदभुत जैन मूर्तियोंका भंडार अनन्त है। जैनोंका यहां पर एक विशाल स्तूप था जहांसे हजारों उत्तमोत्तम शिल्पके नमूने प्राप्त हो चुके हैं। जिन विद्वानोंने कंकाली टीलेसे प्राप्त कलाकी सामग्रीका अध्ययन किया है वे जानते हैं कि मथुराकी जैन धर्मसम्बन्धी कला भारतीय कला के इतिहासमें कितना ऊंचा स्थान रखती है। जैन प्रतिमा शास्त्रके लिए तो यह सामग्री अनमोल ही है। कंकाली टीलेसे प्राप्त सकल सामग्रीका सचित्र प्रकाशन एक अत्यन्त आवश्यक कार्य है जो अभी होने को बाकी है। इस समय कई एक रिसर्च के प्रेमी विद्वान् जैन प्रतिमा शास्त्र ( Jain Iconography) के विषय पर अनुसन्धान कर रहे हैं। श्री उमाकान्त प्रेमानन्द शाह, घडियाली पोल, बडौदा, ने हमसे मथुरा के जैन सम्बन्धी अनेक चित्र मंगाये हैं। वे जैन मूति विद्याकी गवेषणा कर रहे हैं। बम्बई के श्री एस० सी० उपाध्याय भी इस सम्बन्ध में कार्य कर रहे हैं। कलकत्ते के सुविख्यात हमारे मित्र स्वर्गीय श्री पूर्णचन्द्रजी नाहर ने भी कई महत्त्वपूर्ण लेखों के द्वारा जैन मूर्तिशास्त्र पर प्रकाश डाला था। स्वर्गीय डाक्टर बुहलरने अपनी छोटी, परन्तु महत्त्व पूर्ण पुस्तक The Indian Sect of the Jainas में चौवीस तीर्थकरों की प्रतिमा, यक्ष यक्षिणी, लांछन, आदि के सम्बन्ध में अच्छा प्रकाश डाला था। पर भारतीय पुरातत्व में जैन भास्कर शिल्प की सामग्री बहुत अधिक है। और उस सबका श्रमपूर्वक अध्ययन और साक्षात् दर्शन करके जैन प्रतिमाशास्त्र पर एक सचित्र ग्रन्थ के निर्माणकी आवश्यकता का अब सब और अनुभव हो रहा है। आशा है जैनधर्मके उत्साही विद्वान् शीघ्र इस कमी को पूर्ण करेंगे। प्रस्तुत लेख एक विशेष प्रतिमाकी ओर जैन विद्वानोंका ध्यान दिलाने के लिए लिखा गया है। इसका चित्र इसी लेखके साथ प्रकाशित है। यह मूर्ति मध्यकालीन है। मथुरा जिलेमें महाबन नामक स्थान से मिली थी। मूर्ति १-८" ऊंची है। इस मूर्ति में चौकीके ऊपर एक दम्पति एक www.jainelibrary.or For Private & Personal Use Only Jain Education International

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