Book Title: Jain Hiteshi 1920 01 02 Ank 04 05
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 2
________________ ( २ ) ४ समयसार । आचार्य अमृतचन्द्रकृत आत्मख्याति टीका, तात्पर्यवृत्ति और भाषाटीकासहित । निर्णयसागरका छपा हुआ । मूल्य ४ ॥ ) ५ तीस चौवीसीपाठ । कविवर वृन्दावनजी कृत । मू० २) ६ जैन सिद्धान्तप्रवेशिका | स्वर्गीय पं० गोपालदासजी कृत । मू० 17 ) मैनेजर, जैनग्रन्थरत्नाकर कार्यालय, हीराबाग, पो० गिरगाँव, बम्बई । प्रार्थनायें । १ जैनहितैषी किसी स्वार्थबुद्धिसे प्रेरित होकर निजी · लाभके लिए नहीं निकाला जाता है। इसके लिए जो - समय, शक्ति और धनका व्यय किया जाता है वह केवल निष्पक्ष और ऊँचे विचारोंके प्रचारके लिए । अतः इसकी उन्नतिमें हमारे प्रत्येक पाठकको सहायता -देनी चाहिए । २ जिन महाशयों को इसका कोई लेख अच्छा · मालूम हो उन्हें चाहिए कि उस लेखको वे जितने मित्रोंको पढ़कर सुना सकें अवश्य सुना दिया करें । ३ यदि कोई लेख अच्छा न मालूम हो अथवा विरुद्ध मालूम हो तो केवल उसीके कारण लेखक या सम्पादकसे द्वेषभाव धारण न करनेके लिए सविनय निवेदन है । ४ लेख भेजने के लिए सभी सम्प्रदायके लेखकों को आमंत्रण है । -सम्पादक । नियमावली | १ जैनहितैषी का वार्षिक मूल्य २) दो रुपया पेशगी है । २ ग्राहक वर्ष आरंभसे किये जाते हैं और बीचमें ७ वें अंकसे । आधे वर्षका मूल्य १ | ) ३ प्रत्येक अंकका मूल्य तीन आने । << ४ लेख, बदले के पत्र, समालोचनार्थ पुस्तकें आदि 'बाबू जुगलकिशोरजी मुख्तार, सरसावा ( सहारनपुर ) ” के पास भेजना चाहिए । सिर्फ प्रबन्ध और मूल्य आदि सम्बन्धी पत्रव्यवहार इस पतेसे किया जायः- मैनेजर, जैनग्रन्थरत्नाकर कार्यालय, हीराबाग, पो० गिरगाँव, बम्बई । नये जैन ग्रन्थ | १ उत्तरपुराण । आचार्य गुणभद्रकृत मूल और पं० लालारामजीकृत भाषानुवादसहित । मू० १० ) २ पैलोक्यसार । मूल और पं० टोडरमलजीकृत भागावचनिका सहित । मू० ५ ) ३ क्रियाकोश | पं० दौलतरामजीकृत छन्दो. बद्ध ग्रन्थ । मू० २|| ) आवश्यक सूचनायें । १ बम्बई के प्रेसों में कंपोजीटरोंका अकाल पड़ रहा है । इस लिए अब यहाँ छपाईका कोई भी काम समय पर नहीं हो सकता | बड़ी मुश्किलसे यह डबल अंक तैयार कराया जा सका है । आगे के अंक भी समय पर निकल सकेंगे या नहीं, इसमें सन्देह है । २ हितैषीके सम्पादक बाबू जुगलकिशोरजी बीचमें बहुत ही बीमार हो गये थे, इस कारण भी कुछ किलम्ब हो गया है । बाबू साहबका स्वास्थ्य अब सुधर रहा है। बढ़ी हुई कमजोरीके दूर होने में अभी समय लगेगा । ३ छपाईमें अधिक विलम्ब होते देख इस युग्म अंकमें एक फार्म या आठ पेज कम छपाये जा सके हैं। आगे यह कमी पूरी कर दी जायगी। ४ कामकी ज्यादतीके कारण यह अंक भी वी० पी० से नहीं भेजा जा सका । ग्राहक महाशयों से सवि प्रार्थना है कि वे म० आ० से दो रुपया भेजकर हमारे ऊपर कृपा करें, जिससे हमें वी० पी० भेजनेकी दिक्कतसे छुट्टी मिले। हमारी कठिनाइयों पर ग्राहकों को ध्यान देना चाहिए । ५ जिन महाशयोंके पास शुरूसे अंक भेजे जा रहे हैं, उन्हें हम इस वर्षका ग्राहक समझ रहे हैं, म० •आ• न आने पर आगेका अंक उन सबके पास वी० पी० से भेजा जायगा । अब भी जो सज्जन ग्राहक न रहना चाहते हों वे हमें एक कार्डसे सूचना दे देवें, अथवा मिले हुए पाँचों अंक वापस कर देवें । -प्रकाशक ।

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