Book Title: Jain Gyan Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 126
________________ जैन धर्म एवं दर्शन-412 जैन ज्ञानमीमांसा-120 (3) परस्पर विरोधी विचारधाराओं के समन्वय का प्रयास। * सृष्टि का मूलतत्त्व सत् है या असत्- इस समस्या के सन्दर्भ में हमें उपनिषदों में दोनों ही प्रकार की विचारधाराओं के संकेत उपलब्ध होते हैं। तैत्तिरीय-उपनिषद् (2.7) में कहा गया है कि प्रारम्भ में असत् ही था, उसी से सत् उत्पन्न हुआ। इसी विचारधारा की पुष्टि छान्दोग्योपनिषद् (3/19/1) में भी उपलब्ध होती है। उसमें भी कहा गया है कि सर्वप्रथम असत ही था, उससे सत् हुआ और सत् से सृष्टि हुई। इस प्रकार, हम देखते हैं कि इन दोनों में असत्वादी-विचारधारा का प्रतिपादन हुआ, किन्तु इसी के विपरीत, उसी छान्दोग्योपनिषद् (6 : 2 : 1, 3) में यह भी कहा गया कि पहले अकेला सत् ही था, दूसरा कुछ नहीं था, उसी से यह सृष्टि हुई है। बृहदारण्यकोपनिषद् (1 : 4: 1-4) में भी इसी तथ्य की पुष्टि करते हए कहा गया है कि जो कुछ भी सत्ता है, उसका आधार लोकातीत सत् ही है। प्रपंचात्मक-जगत् इसी सत् से उत्पन्न होता है। - इसी तरह, विश्व का मूलतत्त्व जड़ है या चेतन- इस प्रश्न को लेकर उपनिषदों में दोनों ही प्रकार के सन्दर्भ उपलब्ध होते हैं। एक ओर, बृहदारण्यकोपनिषद् (2: 4: 12) में याज्ञवल्क्य मैत्रेयी से कहते हैं कि चेतना इन्हीं भूतों में से उत्पन्न होकर उन्हीं में लीन हो जाती है, तो दूसरी ओर, छान्दोग्योपनिषद् (6: 2: 1, 3) में कहा गया है कि पहले अकेला सत् (चित्त-तत्त्व) ही था, दूसरा कोई नहीं था। उसने सोचा कि मैं अनेक हो जाऊं और इस प्रकार सृष्टि की उत्पत्ति हुई। इसी तथ्य की पुष्टि तैत्तिरीयोपनिषद् (2 : 6) से भी होती है। इस प्रकार, हम देखते हैं कि उपनिषदों में परस्पर विरोधी विचारधाराएं प्रस्तुत की गयी हैं। यदि ये सभी विचारधाराएं सत्य हैं, तो इससे औपनिषदिक-ऋषियों की अनेकान्तदृष्टि का ही परिचय मिलता है। यद्यपि ये सभी संकेत एकान्तवाद को प्रस्तुत करते हैं, किन्तु विभिन्न एकान्तवादों की स्वीकृति में ही अनेकान्तवाद का जन्म होता है, अतः हम इतना अवश्य कह सकते हैं कि औपनिषदिक-चिन्तनों में विभिन्न एकान्तवादों को स्वीकार करने की अनैकान्तिक-दृष्टि अवश्य थी, क्योंकि उपनिषदों में हमें ऐसे अनेक संकेत मिलते हैं, जहाँ एकान्तवाद का निषेध किया गया है। बृहदारण्यकोपनिषद् (3 : 8: 8) में ऋषि कहता

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