Book Title: Jain Dharmvar Stotra
Author(s): Bhavprabhsuri, Hiralal R Kapadia
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 160
________________ श्रीभावप्रभसूरिकृतः कनकवरण काया भली मुखटंको श्रीकार । श्रीमिजिन इकवीसमा सेवकजन आधार ॥ २८ ॥ रामानंदन सुविधि दिल (रुच्यो ) राख्यो न रहे छुपाय । पूरण चंद्रनी ज्योत्स्ना हारी जेहनी काय ॥ २९ ॥ आठ कर्म टाल करी मुगतिं पहोता देव । कुं जिणंद कलानिधि करिहं तेहनी सेव ॥ ३० ॥ शीतल उपवन वायरो शीतल गंग कल्लोल । शीतल जिणेसर सेवतां निशिदिन हुई रंगरोल ॥ ३१ ॥ चवीस जिणवर नाम सुंदर सात क्षेत्र सोहामणा ए कतूहल एम कीधो मन हरखे परखद तणा । श्रीमहिमाप्रभसूरीश तेहना विनेयी 'भावे' को एक एकथी करी दुगुणा हेमचंद्र हेतई लाउ ॥ ३२ ॥ ॥ इति सभाचमत्कार संपूर्णं ॥ सुरचंद लिखितं ॥ जैन० तो ० १० Jain Education International For Private & Personal Use Only १३७ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200