Book Title: Jain Dharm Prakash 1951 Pustak 067 Ank 12
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विश्ववन्ध महावीर। हे विद्यबन्ध तुम आओ, जीवन को सफल बनाओ! ॥ हे ॥ क्षत्रियकुल के मान-विवर्धन, आर्य जाति के गौरव-वर्धन । रागद्वेप-छल-छद्म-विमर्दन, भ्रम का भूत भगाओ ॥ हे विश्व ॥ १ ॥ तीव्र तपों से तप्त जिनेश्वर, कलवरों से मुक्त विश्वेश्वर । शोपित जनता के हृदयेश्वर, शोषण बन्द कराओ॥ हे विश्व ॥ २ ॥ ज्ञानमार्ग के योग्य निदर्शक, कर्म योग के पन्थ-प्रदर्शक । भक्तिमती पद्धति-प्रदर्शक, जग को पन्थ दिखाओ॥ हे विश्व ॥ ३ ॥ बलिदानों की मूर्ति मनोहर, आदर्शों की एक धरोहर ।। प्रेम हंस के मानसरोवर, प्रेमी विश्व बनाओ॥ हे विश्व ॥ ४ ॥ शीतलता के पूर्ण हिमाकर, तेजःपुञ्ज समान प्रभाकर। सौम्यमूर्ति क्षमता-रत्नाकर, क्षमता-शक्ति जगायो ॥ हे विश्व ॥ ५॥ निष्ठुरता के मद के नाशक, कटुता के कापाय-विनाशक । कायरता के मर्म-विनाशक, वीर ! भाव भर जाओ ॥ हे विश्व ॥ ६॥ साम्यवाद के प्रवर प्रवर्तक, जनता के अधिकार-समर्थक । सूतदया-आकार-निदर्शक, सच्चा साम्य-जताओ ॥ हे विश्व ॥ ७॥ वसुन्धरा में सबसे उत्तम, भारत मा के लाल महत्तम । महावीर! साधक-गणसत्तम, भारत भाग्य जगाओ ॥ हे विश्व ॥ ८॥ राजमल भण्डारी-आगर (२५२ ) For Private And Personal Use Only

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