Book Title: Jain Dharm Prakash 1948 Pustak 064 Ank 10 Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha View full book textPage 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir '.. गे कार्य नहवेग। हासाने कभी यदि को भी बुलायेंगे ॥२॥ करें सागत प्रथम इनका, अमारी पर नजया के । पना का प्रण जीवों के, अभय उनको बनायेंगे ॥ ३॥ . स्वतता की लहर में, सब बहावे मेदभाम को । परमार प्रेम मे पर्ण, पपन का मनायेंगे ॥१॥ करें प्रारंभ नास से, सवरे पांच बजे उठकर । प्रभ महावीर की वाणी, प्रभात फेरी सुनायेंगे ॥ ५ ॥ प्रशु गलागीर जिन्होंने किया विध्वंस नाचगा का। सभी को मुग्न पियाग है, यही वाणी गुंजायेगे ॥६॥ न मानों धर्म हिंसा में, अहिंसा धर्म उत्तम है। सभी जीवों को यह वलभ, यही नारे लगायेंगे ॥ ७ ॥ निकाले नित्य प्रोशेसन, प्रभु की श्रेष्ठ पूजा का । भारमप्रेमी घरग के रंग से, सव ही रंगायेंगे ॥ ८ ॥ षड़ी ही श्रेष्ठ प्रोशेसन, फरकती जैन ध्वज उत्तम । बजा कर जैन नोन्ड को, इन्द्रध्वज आगे चलायेगें ॥९॥ मनावे सुरलोक में इन्द्र, प्रभु के जन्म महोत्सव को । प्रभु के जन्म यांचनदिन, महोत्सव को मनायेगे ॥ १० ॥ मंवारीपर्व दिन में सय, करेंगे आत्म को उज्वल । भूला कर वैर भावों को, गले सव को लगायेंगे ॥ १२ ॥ काही एक पर्व ऐसा है, हटाता कषाय कलुपित को । यनाता आत्म को निर्मल, क्षमा सच्ची कहायेंगे ॥ १२ ॥ दीखा दे वीर अनुयागी, संवत्सरी पर्व का महातम | सभी हम भाई भाई है, यही जग को जतायेगे ॥ १३ ॥ पिनय गुरुदेव को करते, हटादो वाहानन्दी को। मिलो सय प्रेगगे गुरुवार, यही गाव दिन्टने चाहेंगे ॥१५॥ प्रभु महावीर अनुयायी, रसिक जग को यना करके। पीलाने जैनतचामत, तभी जैनत्व बडायेंगे ॥ १५ ॥ लगी हे प्यास जैनत्व की, विश्व के मुन्न पदों को । यह त्रुटी पूर्ण ही करना, जी गौरव नहायेंगे ॥१६॥ समय है आगे बढ़ने का, गगर हम जा रहे पीछे। दव्य क्षेत्र काल भाव को लग्न का, कदम आगे गडायेंगे ॥१७॥ इसी में शोमा शासन की. व कार्यकता के कार्यपटुता की। समय पहचान कर के रान, जैन ध्वज फरकायेंगे ।। १८॥ सभी को घज का गौरव है, हमे भी चाहिये पेस।। हमारे जेन नज नीचे, 'ग' जग को लायेगे ॥ १२ ॥ राजमल भंडारी-आगर( मालवा) For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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