Book Title: Jain Dharm Prakash 1948 Pustak 064 Ank 05 Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूज्य बापु को हृदय श्रद्धांजली । अहिंसा सत्य के परम उपासक, भारत के ऐक प्यारे थे। सर्व विश्व के नयनों के तारे, बापु आप हमारे थे ॥१॥ आत्मश्रद्धा के पूज्य बापु, भूमंडल के ध्रुव तारे थे । भारत की नैया के बापु, ऐक खिवेयाहारे थे ॥ २ ॥ आत्मज्योति के दिव्य प्रकाश से, मार्ग के सर्जनहारे थे । थे आदर्श पथ-प्रदर्शक, विश्व के एक सहारे थे ।। ३ ।। ईग्नि और रागद्वेष से, बापु सदा ही न्यारे थे। शत्रु मित्र को समदृष्टि से, पूज्य बापु देखनवारे थे ॥ ४ ॥ सा धमाँ के प्रति बापु, समतुष्टि गणानधारे थे। सव धर्मा की दिव्य प्रार्थना में, बापु तन्मय वारे थे ॥ ५ ॥ थे दृढ़ प्रतिज्ञ वापु, जो प्रतिज्ञा दिल में धारे थे। जहां तक पूर्ण न होय प्रतिज्ञा, न उससे टरनेवारे थे ॥ ६ ॥ सेवा वृत्त की अखण्ड तपस्या, पूज्य बापु सदा ही धारे थे । इसी तपस्या से भारत की, परतंत्रता को जारे थे ॥ ७ ।। दक्षिण आफ्रिका की, अग्निपरीक्षा से बापु चमके थे। वडता गया फिर तेज बापु का, फिर विजयश्री वरते थे।॥ ८ ॥ आजादी की खातिर बापु, समयोचित नीति धारे थे। थे राजनीति में पूर्ण निपुण, सब दिल में निश्चय धारे थे ॥ ९ ॥ बापु की नीति से ही हम, सब आजादी वारे है। बापु को नतमस्तक होकर, उन पर ही बलिहारे हैं ॥ १० ॥ थे मनस्वी वह बापु, मन प्रसन्न सदा ही रहते थे। शोकातुर शरणार्थि का भी, मन हरण कर लेते थे ॥ ११ ॥ थे अहिंसक वह वापु, हिंसा का अस्तित्व मिटाते थे। अशान्त वातावरण को भी, शान्तिमयी बनाते थे ॥ १२ ॥ थे सत्य के परम गवेषक, न असत् को टीकने देते थे। कर सत्याग्रह उस कदाग्रह का, उन्मूलन कर देते थे ॥ १३ ॥ For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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