Book Title: Jain Dharm Prakash 1948 Pustak 064 Ank 05
Author(s): Jain Dharm Prasarak Sabha
Publisher: Jain Dharm Prasarak Sabha

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Page 3
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नं-४५3 319 mernml HTTRIMomaamanau nee Yस्त १४ भुः । અંક ૫ મે ઈ :शशुन: J२ स. २४७. । वि. स. २० उपा० श्री देवचंद्रजीकृत अप्रगट ॥ श्रीपार्श्वनाथस्तवनम् ॥ बामानंदन तुं आनंदन, चंदन शीतल भावे राज । पास सुणीजे दुःख निकंदन, गुणे अनिंदन जे वंदन भावे राज। पास सुणीजे म्हानु दास गिणीजे, अवसर आज पूरीजे राज ॥१॥ तुहि ज सामी, अन्तरजामी, मुझ मन तो विसरामी राज। शिवगतिगामी, तुं निकामी, बीजा देव विरामी राज ॥ २ ॥ मूरति प्यारी, मोहनगारी, प्राणथकी पण प्यारी गज । हुं बलिहारी, अर्ज हजारी, मुझने आस तुम्हारी राज ॥ ३ ॥ जे कतारी, करे तारी, लीजे तेहने तारी राम । प्रीति विचारी, सेयक सारी, दीजे केम घिसारी राज ॥ ४ ॥ विधन विडारी, स्वामी संभारी, प्रीति खरी मैं धारी राज । शंक निवारी, भाव वधारी, वारी तुझ चरणांरी राज ॥ ५ ॥ मिली नरनारी, यहु परिवारी, पूज रचे तुज सारी राज । देवचंद साहिब सुखदाई, पूरो आश हमारी राज ॥ ६ ॥ -सं० अगरचंरजी नाहटा ouriswanathairenit S For Private And Personal Use Only

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