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होने के लिये ग्रंथों के निम्न चार भाग वताए हैं। इन को चार वेद भी कहते हैं -
१. प्रथमानुयोग-इस विभाग में उन महान् पुरुषों व स्त्रियों के जीवनचरित्र है, जिन्होने आत्मकल्याण किया था व जो आगे करंगे । इस कल्पमें इस भरतक्षेत्र में ६३ महापुरुष होचुके है । उनका सक्षिप्त वर्णन हमने इस पुस्तक में दे दिया है। इन्ही में श्री ऋषभदेव, श्री अरिष्टनेमि, श्रीपावं, श्री महावीर, श्रीरामचन्द्र, श्रीकृष्ण श्रादि गर्मिन है । विस्तार से जानने के लिये महापुराण, पद्मपुराण, हरिवंशपुराण आदि देखने योग्य हैं।
२. करणानुयोग-इस विमागमें इस विश्वका नकशा वमाप व विभाग वर्णिन है। स्वर्ग, नर्क कहां हैं ? मध्यलोक कहां है ? वहां क्या २ रचना रहा करती है ? इस सम्बन्धका वर्णन देखने के लिये त्रिलोकसार ग्रन्थ, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति आदि पढ़ने योग्य है ।
३. चरणानुयोग-इस में यह कथन है कि गृहस्थ व गृहत्यागी साधु को क्या २ धर्माचरण पालना चाहिये। इस का दर्शन इस पुस्तक में आवश्यकतानुसार कराया गया है। विशेष जानने वालो को मूलाचार, रत्नकरण्डश्रावकाचार, चारित्रसार, पुरुषार्थ सिद्धयुपाय श्रादि ग्रन्थ देखने चाहिये।
४. द्रव्यानुयोग-इस में सर्व तत्त्वज्ञान है व अध्यात्म.