Book Title: Jain Darshan ke Maulik Tattva Author(s): Nathmalmuni, Chhaganlal Shastri Publisher: Motilal Bengani Charitable Trust Calcutta View full book textPage 6
________________ प्रज्ञापना जैन दर्शन जीवन-शुद्धि का दर्शन है। राग-द्वेष आदि बाह्य शत्रु, जो आत्मा को पराभूत करने के लिए दिन-रात कमर कसे अड़े रहते हैं, से जूझने के लिए यह एक अमोघ अस्त्र है। जीवन-शुद्धि के पथ पर श्रागे बढ़ने की नाकांक्षा रखनेवाले पथिकों के लिए यह एक दिव्य पाथेय है। यही कारण है, जैन दर्शन जानने का अर्थ है - श्रात्म मार्जन के विधि क्रम को जानना, श्रात्म-चर्या की यथार्थ पद्धति को समझना ! जैन जंगत् के महान् अधिनेता, ज्ञान और साधना के अप्रतिम धनी, महामहिम आचार्य श्री तुलसी के अन्तेवासी मुनि श्री नथमलजी द्वारा लिखा प्रस्तुत ग्रन्थ जैन दर्शन के मूलभूत तत्त्रों को अत्यन्त प्राजल एवं प्रभावक रूप में सूक्ष्मतो के साथ निरूपित करनेवाली एक अद्भुत कृति है । यह जनवन्ध श्राचार्य श्री तुलसी द्वारा रचित 'जैन सिद्धान्त दीपिका' और 'भिक्षु न्याय कर्णिका' के संयुक्त अनुशीलन पर आधारित है। मुनि श्री ने इसमें जैन दर्शन के प्रत्येक श्रंग का तलस्पर्शी विवेचन करते हुए अत्यन्त स्पष्ट एवं बोधगम्य रूप में उसे प्रस्तुत किया है। 'जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व' निःसन्देह दार्शनिक जगत् के लिए मुनि श्री की एक अप्रतिम देम है । श्री तेरापंथ द्विशताब्दी समारोह के अभिनन्दन में इस महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ के प्रकाशन का दायित्व मोतीलाल बंगानी चेरिटेबल ट्रस्ट, कलकता ने स्वीकार किया, यह अत्यन्त प्रसन्नता का विषय है । जैन धर्म एवं दर्शन सम्बन्धी साहित्य का प्रकाशन, जनवन्ध श्राचार्य भी तुलसी द्वारा सम्प्रवर्तित अणुव्रत आन्दोलन के नैतिक जागृतिमूलक आदर्शों का प्रचार एवं प्रसार ट्रस्ट के उद्देश्यों में से मुख्य हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रकाशन द्वारा ट्रस्ट ने अपने उद्देश्यों की पूर्ति का जो प्रशस्त कदम उठाया है, वह सर्वथा अभिनन्दनीय है ।Page Navigation
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