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नियमवाद / १२७ काल और रुक्ष काल। स्निग्ध काल और स्निग्ध क्षेत्र में आयु लम्बी होगी, बुढ़ापा भी जल्दी नहीं आ पाएगा या बहुत कम आएगा। रुक्ष क्षेत्र और रुक्ष काल में आयु छोटी हो जाएगी, बुढ़ापा भी जल्दी आ जाएगा । यौगलिक काल में बहुत लम्बी आयु थी । यौगलिक जीव बूढ़े नहीं होते थे, बिल्कुल जवान ही रहते थे। कारण बतलाया गया—वह काल स्निग्ध था, क्षेत्र भी स्निग्ध था। आज की चीनी से हजार गुना ज्यादा मिठास उस समय की मिट्टी में थी। स्निग्ध क्षेत्र और इतना ही मीठा काल। उस समय स्नेह के परमाणु अत्यन्त सघन थे और वे व्यक्ति को प्रभावित करते थे। संदर्भ नींद का
जीवन का एक सन्दर्भ है—नींद । व्यक्ति के जीवन को नींद बहुत प्रभावित . करती है। जब नींद आनी चाहिए, तब बहुत सारे व्यक्तियों को नींद नहीं आती और जब नींद नहीं आनी चाहिए, तब लोगों को नींद आ जाती है। ध्यान के समय में नींद नहीं आनी चाहिए, स्वाध्याय के समय में नींद नहीं आनी चाहिए। किन्तु नींद आ जाती है। सोते समय, सोने के बाद, नींद आनी चाहिए किन्तु उस समय बहुत लोगों को घंटों तक नींद नहीं आती। वे बिस्तर पर इधर-उधर करवटें बदलते रहते हैं। नींद जीवन के साथ जुड़ा हुआ एक पहलू है। प्रश्न होता है-नींद का क्या नियम है ? उसे कौन प्रभावित करता है? इसका पहला नियम है-काल । काल
और नींद का बहुत गहरा सम्बन्ध है। दिन, नींद का काल नहीं है। नींद का काल है-रात्रि । दिन में सोना और रात में न सोना-दोनों स्वास्थ्य की दृष्टि से अनुकूल नहीं माने जाते । आयुर्वेद का सिद्धान्त है—दिन में नहीं सोना चाहिए या बहुत नहीं सोना चाहिए। केवल गर्मी में दिन में सोया जा सकता है, और दिनों में दिन में सोना उपयुक्त नहीं माना जा सकता। काल का नियम है नींद के साथ जुड़ा हुआ। सहज नींद रात में जितनी अच्छी आती है, दिन में उतनी अच्छी नहीं आती। यदि आती है तो अधिक आलस्य पैदा कर देती है। अपराध भी नींद में
दूसरा नियम है कर्म का । नींद का कर्म के साथ भी सम्बन्ध है । जब दर्शनावरणीय कर्म के परमाणु व्यक्ति को प्रभावित करते हैं, तब व्यक्ति नींद में चला जाता है। एक व्यक्ति बहुत नींद लेता है। उसका निदान नहीं होता। बहुत प्रयत्न करता है, पर नींद आए बिना नहीं रहती। इस स्थिति की समीक्षा करना अपेक्षित है। न आहार के कारण, न कफ की प्रधानता और न वायु की प्रधानता। बिल्कुल स्वस्थ है और फिर
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