Book Title: Jain Darshan aur Anekanta
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 150
________________ १४८ / जैन दर्शन और अनेकान्त मिथ्या है। जो दिख रहा है, वह असार है, मिथ्या है। दूसरे दर्शन का दृष्टिकोण है-प्रत्येक पर्याय वर्तमान है, क्षणिक है। समाप्त होने के बाद कुछ भी नहीं होता। यह मिथ्या का सिद्धान्त पर्याय के आधार पर चलता है। जितने पर्याय हैं, वे सब मिथ्या हैं । एक दृष्टि से विचार करें तो पर्याय मिथ्या है, यह कहना भी असंगत नहीं है। पर्याय को मिथ्या कहा जा सकता है । जो अभी है वह बाद में नहीं भी हो सकता है । उसे मिथ्या, झूठ, माया या धोखा मान लें तो कोई अस्वाभाविक बात नहीं लगती। हमारे सामने दो दृष्टिकोण हैं। एक दृष्टिकोण पर्याय को सत्य बतला रहा है और दूसरा दृष्टिकोण पर्याय को मिथ्या बतला रहा है। एक ओर जगत् मिथ्या और ब्रह्म सत्यं का घोष है तो दूसरी ओर जगत् सत्य और ब्रह्म अव्याकृत का उद्घोष है। ब्रह्म का कोई पता नहीं है, आत्मा का कोई पता नहीं है। जो दृश्य नहीं है, वह सत्य नहीं है । जो दृश्य है, वह सत्य है । पर्याय दृश्य है। द्रव्य दृश्य नहीं है। ज्ञेय तत्व दो हैं द्रव्य और पर्याय-इन दो के आधार पर सारे विचारों का विकास हुआ है, सारे दर्शनों का विकास हुआ है। जितने भी दर्शन हैं वे या तो द्रव्यवादी हैं या पर्यायवादी। द्रव्यवादी दर्शन द्रव्य की व्याख्या कर रहे है, नित्य और शाश्वत की व्याख्या कर रहे हैं। पर्यायवादी दर्शन अनित्यवादी दर्शन है। तीसरा कोई दर्शन नहीं है। द्रव्यवादी दर्शनों ने द्रव्य की व्याख्या की और प्रत्येक द्रव्य को कूटस्थ नित्य बताया। द्रव्य नित्य है। नित्य ही सत्य है, जो अनित्य है, वह सत्य नहीं है। एक सूत्र बन गया-शाश्वत सत्य और अशाश्वत मिथ्या । पर्यायवादी दर्शनों ने पर्याय की व्याख्या की। उनके लिए परिवर्तन सत्य है और जो नहीं बदलता है, वह असत्य होता है। जैन आचार्यों ने इस समस्या पर विचार किया। उन्हें लगा—दोनों दृष्टियां ठीक नहीं हैं। दोनों में कमियां हैं । ज्ञेय पदार्थ दो हैं—द्रव्य और पर्याय । इनके सिवाय जानने का कोई विषय ही नहीं है। सारा ज्ञेय विषय इन दो भागों में ही विभक्त होता है। विषय दो हैं तो जानने की दृष्टियां भी दो ही होंगी। द्रव्य को जानने वाली दृष्टि द्रव्यार्थिक नय है और पर्याय को जानने वाली दृष्टि पर्यायार्थिक नय है। अनेकान्त और सम्यक् दर्शन प्रश्न होता है—सम्यक् दर्शन क्या है? द्रव्य को जानने वाली दृष्टि द्रव्य में अटक जाती है तो वह मिथ्या दर्शन है और पर्याय को जानने वाली दृष्टि पर्याय में Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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