Book Title: Jain Darshan aur Adhunik Vigyan
Author(s): Nagrajmuni
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 7
________________ जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान दुर्बलतानों को सोचते हुए मैं अपने ध्येय में कहाँ तक सफल हुआ हूँ इसका जरा भी गौरव नहीं कर सकता। ___ इस प्रसंग में अंग्रेजी व हिन्दी के उन लेखकों का मैं आभार माने बिना नहीं रह सकता जिनकी कृतियाँ मेरे इस उपक्रम में योगभूत बनी हैं । प्रो. जी. एल. जैन एम. एस-सी. का तो मुझे बहुत ही मूक समर्थन मिला जब कि मैं अपनी पुस्तक के बहुत सारे स्थल लिख चुका था और एकाएक 'Cosmology old and New' पुस्तक मुझे देखने को मिली। मुझे अत्यन्त हर्ष हुआ कि जिन विषयों पर मैं लिखने जा रहा हूँ उन्हीं विषयों पर और लगभग उसी क्रम से इससे पूर्व भी लिखा जा चुका है । इस पुस्तक से मेरे अधीत विषय को बहुत समर्थन मिला और बहुत कुछ नया मैंने इस पुस्तक से पाया। उन वैज्ञानिकों का सौजन्य तो कभी मेरी स्मृति से मिट ही कैसे सकता है जिन्होंने मेरी रुचि और मेरे अध्ययन को अपना ही विषय मानकर अधिक से अधिक समय तक मेरे अनुशीलन को समृद्ध और परिपुष्ट करने में लगाया। जिसमें स्वामी विद्यानन्द (प्रो० विभूति भूषण दत्त एम. एस-सी. भूतपूर्व प्राध्यापक कलकत्ता विश्वविद्यालय) सरदार निरंजन सिंह एम. एस-सी. तत्कालीन प्रिन्सिपल पंजाब यूनिवर्सिटी, कैम्प कालिज, अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिलब्ध डॉ० राधाविनोद, श्री जेठालाल झवेरी बी. एस-सी. प्रभृत्ति के नाम उल्लेखनीय हैं। मुनि महेन्द्रकुमारजी ने इस पुस्तक के लेखन में मेरे दायें हाथ का काम किया है। सच बात तो यह है उन्होंने इस पुस्तक का मात्र लेखन ही नहीं किया मेरे बौद्धिक श्रम में भी बहुत कुछ हाथ बँटाया। समय-समय पर मेरे मन पर छा जाने वाली तन्द्रा को विचलित करने का तो मानो उन्होंने प्रण ही ले रखा था। उस समय उनकी वह आगे लिखने की रट मेरे मानस को झुंझला देती थी। पर कुल मिलाकर आज यह स्पष्ट है कि यदि ऐसा नहीं हुआ होता तो पुस्तक की सम्पन्नता और अधिक समय ले लेती। . सं० २०१३ फा० शु० १० पिलानी (राजस्थान) . -मुनि नगराज Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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