Book Title: Jain Darshan Adhunik Drushti
Author(s): Narendra Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 71
________________ जन स्वास्थ्य के सुधार की दिशा मे भी जैनियो द्वारा विभिन्न क्षेत्रो मे कई अस्पताल, औषधालय, औपध वैक आदि खोले गये हैं, जहा रोगियो को नि शुल्क तथा रियायती दरो पर चिकित्सा सुविधा प्रदान की जाती है। समय-समय पर नेत्र चिकित्सा, रोग-परीक्षण, रोगोपचार आदि के शिविर स्थान-स्थान पर लगाये जाते हैं जहां सभी प्रकार की नि शुल्क सुविधाएँ विना किसी भेदभाव के मानव मात्र को प्रदान की जाती हैं। पशु एव पक्षी चिकित्सालयो मे रुग्ण एव असहाय पशु-पक्षियो की परिचर्या की जाती है। स्थान-स्थान पर वृद्ध, असहाय एव लावारिस पशुओ के चारे-पानी आदि की व्यवस्था के लिए पिंजरापोल आदि खोले गये हैं । जैन साधु और साध्वियां वर्षा ऋतु के चार महिनो मे पदयात्रा नही करते। वे एक ही स्थान पर ठहरते हैं जिसे चातुर्मास करना कहते हैं । इस काल मे जैन लोग तप, त्याग, प्रत्याख्यान, सघ-यात्रा, तीर्थ यात्रा, मुनि-दर्शन, उपवास, आयम्विल, मासखमण, सवत्सरी, क्षमापर्व जैसे विविध उपासना-प्रकारो द्वारा आध्यात्मिक जागति के विविध कार्यक्रम विशेप रूप से बनाते हैं। इससे व्यक्तिगत जीवन निर्मल, स्वस्थ और उदार बनता है तथा सामाजिक जीवन मे वधुत्व, मैत्री, वात्सल्य जैसे भावो की वृद्धि होती है। अधिकांश जैन धर्मावलम्बी कृषि, वाणिज्य और उद्योग पर निर्भर हैं। देश के विभिन्न क्षेत्रो मे ये फैले हुए हैं। वगाल, विहार, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात आदि प्रदेशो मे इनके वडे-बडे उद्योग-प्रतिष्ठान हैं । अपने आर्थिक सगठनो द्वारा इन्होने राष्ट्रीय उत्पादन तो वढाया ही है, देश के लिये विदेशी मुद्रा अर्जन करने मे भी इनको विशेष भूमिका रही है। जैन सस्कारो के कारण मर्यादा से अधिक आय का उपयोग वे मार्वजनिक स्तर के कल्याण कार्यों में करते रहे हैं। राजनीतिक चेतना के विकास में भी जैनियो का सक्रिय योगदान रहा है। भामाशाह की परम्परा को निभाते हुए कइयो ने राष्ट्रीय रक्षाकोष मे पुष्कल राशि समर्पित की है। स्वतन्त्रता से पूर्व देशी रियासतो के शासन प्रवन्ध मे कई जैन श्रावक राज्यो के प्रधान, दीवान, फौजवक्शी, किलेदार, मुसद्दी आदि महत्त्वपूर्ण पदो पर कार्य करते रहे हैं । स्वतत्रता सग्राम मे क्षेत्रीय आन्दोलन का नेतृत्व भी उन्होने सभाला है । अहिंसा, सत्याग्रह, भूमिदान, सम्पत्तिदान, भूमि सीमावदी, आयकर प्रणाली, धर्म

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