Book Title: Jain Darshan Adhunik Drushti
Author(s): Narendra Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 108
________________ ३. अन्याय और अत्याचार की समस्या प्रभाव और विघटन की तरह आज अन्याय और अत्याचार की समस्या भी उग्न बनी हुई है। इस समस्या के मूल मे भी अधिकाधिक अर्थलाभ प्राप्त करने व अपने अह को तुष्ट करने की भावना मुख्य है। 'जीवन संघर्ष मे जो योग्यतम है वही जीवित रहता है' यह भावना अन्याय और अत्याचार को बढ़ावा देती है। भगवान् महावीर ने संघर्ष को नही,, सहयोग को जीवन का मूल आधार माना और कहा-"परस्परोपनहो.... जीवानाम्" अर्थात् पर्पर उपकार करते हुए जीना ही वास्तविक जीवन है। जब यह समझ आ जाती है तब समाज मे अन्याय और अत्याचार मिट जाते है। पर आज इस समझ की बडी कमी है। जब व्यक्ति अपने अधिकार का अतिक्रमण करता है तब अन्याय की शुरुआत होती है। अन्याय के मुख्य दो प्रकार है-व्यक्ति द्वारा व्यक्ति के प्रति अन्याय और शासन द्वारा व्यक्ति के प्रति अन्याय । महावीर ने दोनो के खिलाफ जिहाद छेडा । शासन के अन्याय को मिटाने के लिये कई राज्य क्रान्तियाँ हुई पर फिर भी अन्याय मिटा नही क्योकि अन्याय की मूल जड व्यक्ति के चिंतन मे है। जब तक चिंतन नही बदलता, अन्याय नही रुकता। जब हमारे मन मे यह भाव पैदा होता है कि जैसे हम स्वतन्त्र है, वैसे दूसरे भी स्वतन्त्र है, जैसे हम सुख से रहना चाहते है वैसे दूसरे भी सुख से रहना चाहते है तब अहिंसा, आत्मीयता और मैत्री का भाव पैदा होता है। ___ . भगवान् महावीर ने अन्याय को रोकने के लिये जो नियम बनाए वे उनके समय की अपेक्षा आज अधिक उपयोगी और प्रभावी प्रतीत होते है। उन्होने कहा-अपनी आवश्यकताओ की पति के लिये व्यक्ति को सकल्पपूर्वक की जाने वाली हिंसा से बचना चाहिये । उसे ऐसे नियम नही बनाने चाहिये जो अन्याय युक्त हो, न ऐसी सामाजिक रूढियो के बधन स्वीकार करने चाहिये जिनसे गरीबो का अहित हो । अइभार (अतिभार) अतिचार इस बात पर बल देता है कि अपने अधिनस्थ कर्मचारियो से निश्चित समय से अधिक काम न लिया जाय । न पशुओ, मजदूरो आदि पर अधिक बोझा लादा जाय । व्यक्ति अपना व्यापार इस प्रकार करे कि उससे किसी का भोजन व पानी न छीना जाय। सत्यारणुव्रत मे सत्य के रक्षण और असत्य के बचाव पर बल दिया गया है । कहा गया है कि व्यक्ति झूठी साक्षी न दे, झूठे लेख, झूठे दस्तावेज ६४

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