Book Title: Jain Darshan Adhunik Drushti
Author(s): Narendra Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

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Page 141
________________ भाषा मे फैलाव किया जाय । कम-सद्धान्त, व्रत-साधना, ध्यान-योग, षट् द्रव्य आदि ऐसे विन्दु हैं, जिनका आज की वैज्ञानिक-मनोवैज्ञानिक चिन्तन धारा से पर्याप्त मेल है। यदि वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक अपनी खोज के लिए इनका आधार प्राप्त कर सकें तो मानवता को बड़ी राहत मिलने की आशा की जा सकती है। दर्शन को प्रायोगिक धरातल पर उतारने तथा केवली प्ररूपित अनुभवगम्य चिन्तन को आधुनिक ज्ञानविज्ञान के तरीको द्वारा अधिकाधिक प्रत्यक्षीभूत करने की दिशा मे प्रयत्न किये जाने चाहिये। वर्तमान परिस्थितियाँ इतनी जटिल, शीघ्र परिवर्तनगामी और भयावह बन गयी है कि सत्रस्त व्यक्ति अपने आवेगो को रोक नही पाता और विवेकहीन होकर आत्मघात तक कर बैठता है। आत्महत्याओ के ये आकडे दिल दहलाने वाले है। ऐसी परिस्थितियो से बचाव तभी हो सकता है जबकि व्यक्ति का दृष्टिकोण तनाव रहित व आध्यात्मिक बने। इसके लिये आवश्यक है कि वह जड तत्त्व से परे चेतन तत्त्व की सत्ता मे विश्वास कर यह चिन्तन करे कि मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, किससे बना हूँ, मुझे कहाँ जाना है ? यह चिन्तन-क्रम उसके मानसिक तनाव को कम करने के साथ साथ उसमे आत्मविश्वास, स्थिरता, धैर्य, एकाग्रता जैसे सद्भावो का विकास करेगा। '' १२७

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