Book Title: Jain Darshan Adhunik Drushti
Author(s): Narendra Bhanavat
Publisher: Samyag Gyan Pracharak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 139
________________ उत्तरदायी है । सृष्टि का कर्ता ईश्वर नही। वह अनादि अनन्त है । परा मनोविज्ञान पूर्व-जन्म के सस्कारो और उसके सन्दर्भ से कर्म-सिद्धान्त को मनोवैज्ञानिक आधार (प्रयोग-परीक्षण विधि से) देने में सफल होता दिखाई दे रहा है। आध्यात्मिकता की पहली शर्त है-व्यक्ति के स्वतत्रचेता अस्तित्व की मान्यता। आज की विचारधारा इस तथ्य पर सर्वाधिक बल देकर व्यक्ति मे वाछित मूल्यो के लिए आवश्यक परिस्थितियो के निर्माण की ओर अग्रसर है। आज सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर मानव-कल्याण के लिए नानाविध सस्थाएँ और एजेन्सिया कार्यरत है। भौतिक समद्धि और उत्पादन की शक्ति बढाने के पीछे भी जनसाधारण के अभावो को दूर कर उसे खुशहाल बनाने की भावना निहित है। चिकित्सा के क्षेत्र मे जो क्रान्तिकारी परिवर्तन आया, उसने रोग मुक्ति मे अभूतपूर्व सहायता दी। सामाजिक जागरण ने अछूतो, पद दलितो, पिछडे हए वर्गों और नारी जाति को ऊपर उठने के अवसर दिये। उनमे साहस और स्वाधीन चेतना के भाव भरे । उन्हे अपने मे निहित शक्ति से अवगत कराया। आर्थिक क्रान्ति ने सब की मूल आवश्यकताएं-खाना, कपडा और आवास पूरी करने का लक्ष्य रखा और इस ओर तेजी से बढ़ने के लिए औद्योगीकरण की प्रक्रिया तीव्र करने का समारम्भ किया। शहरी सम्पत्ति की सीमा बन्दी, भूमि का सीलिंग और आयकर पद्धति ये कुछ ऐसे कदम है जो आर्थिक विषमता को कम करने में सहायक सिद्ध हो सकते है। धर्म निरपेक्षता का सिद्धान्त मूलत इस बात पर बल देता है कि धर्माचरण मे सभी स्वतत्र है, सभी धर्म आदरणीय है, सग्राह्य है। अपनी-अपनी भावना के अनुकूल प्रत्येक व्यक्ति को किसी मत या धर्म के अनुपालन की स्वतत्रता है। ये परिस्थितिया इतिहास मे इस रूप मे इतनी सार्वजनीन बनकर पहले कभी नहीं देखी गई। मेरो दृष्टि में ये परिस्थितियां निश्चय ही धर्म या आध्यात्मिकता के सामाजिक स्वरूप को रूपायित करने में सहायक हो रही है। अब धर्म आध्यात्मिकता को हम वैयक्तिक साधना तक ही सीमित बनाकर नहीं रख सकते । एक समय था जब आध्यात्मिक धर्म साधना का निवृत्तिपरक रूप ही अधिक व्यावहारिक और आकर्षक लगता था, क्योकि उस समय तक सभ्यता का विकास छोटे पैमाने पर हुआ था। यातायात और सचार के साधनो का वर्तमान रूप कल्पना की वस्तु समझा जाता था। पर अब १२५

Loading...

Page Navigation
1 ... 137 138 139 140 141 142 143 144 145