Book Title: Jain Agam me Darshan
Author(s): Mangalpragyashreeji Samni
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 13
________________ कृतज्ञता-ज्ञापन भगवान महावीर द्वारा अर्थ रूप में एवं गणधरों द्वारा सूत्र रूप में ग्रथित तथा उत्तरवर्ती जैनाचार्यों द्वारा संरक्षित जैन आगम रूपी बहुमूल्य धरोहर वर्तमान में हमें प्राप्त हुई है। इस प्राप्ति के लिए सम्पूर्ण पूर्ववर्ती परम्परा के प्रति हार्दिक विनम्र प्रणति। इस अनुपमेय ज्ञानराशिसे परिचय एवं इसके प्रति श्रद्धा-संवेग उत्पन्न करने वाले मेरे दीक्षा-शिक्षा गुरु आचार्यश्री तुलसी जिनकी दिव्य-सन्निधि अध्यात्म जगत में बढ़ने की मुझे सतत प्रेरणा देती रहती है, उस दिव्यात्मा के प्रति श्रद्धा समर्पित करते हुए यह आकांक्षा करती हूँ कि वह सतत मेरे लिए प्रकाश स्तम्भ बनी रहे। आचार्य तुलसी केसक्षम उत्तराधिकारी श्रुत-सागर, आगम-अर्णव आचार्यश्रीमहाप्रज्ञ जी, जिनके पादारविन्दों में बैठकर श्रुत-पराग को बटोरने का स्वर्णिम अवसर मुझे प्राप्त हुआ। जिनकी अन्तश्चेतना स्फुरित प्रज्ञा ने निबिड अज्ञान अंधकार में मेरे ज्ञान के दीप को प्रज्वलित किया है। उन पूजार्ह पूज्यप्रवर के चरणों में श्रद्धा-संपूरित विनीत श्रद्धा-सुमन समर्पित करते हुए मुझे आन्तरिक आनन्द की अनुभूति हो रही है। यद्यपि आपश्री का हर क्षेत्र में हमें मार्गदर्शन उपलब्ध है तथापि इस प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध की संयोजना में आपश्री का साक्षात् दिशानिर्देश भी प्राप्त हुआ, तब ही मैं यह दुरूह कार्य सम्पन्न कर सकी हूँ। करुणा एवं कोमलता युक्त आपका कुशल नेतृत्व भविष्य में भी मुझे प्रगति पथ अग्रसर करता रहे, यही अपने प्रति मंगलकामना करती हूँ। तेरापंथ धर्मसंघ के नवोदित तेजस्वी भानु श्रद्धेय युवाचार्यश्री महाश्रमणजी का अध्यात्म-अभिमण्डित आभावलय मेरे भीतर अध्यात्म-स्फुरणा उत्पन्न करता रहे। संघ महानिदेशिका महाश्रमणी साध्वी प्रमुखाश्री जी, जिनकी कुशल अनुशासना में साध्वी समाज निरन्तर विकास के पथ पर गतिशील है। जिनके प्रेरणा-प्रदीप ने मेरे पुरुषार्थ के दीप को स्नेह-दान दिया है। उनके प्रति मैं अपनी हार्दिक श्रद्धा प्रणति प्रस्तुत करती हूँ। साध्वी अणिमाश्रीजी का वात्सल्यपूर्ण आशीर्वाद एवं साध्वी सुधाप्रभाजी की मंगलकामना भी मेरी श्रुत साधना की प्रगति में निमित्त बनती रही है। नियोजिकाजी आदि सभी समणीजी के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ जिनका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 346