Book Title: Historical Inscriptions Of Gujarat Part 02
Author(s): Girjashankar Vallabhji Acharya
Publisher: Farbas Gujarati Sabha

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुजरालना ऐतिहासिक लेख अक्षरान्तर पतरूं पहेलं. १ ॐ स्वस्ति नान्दीपुरीतो [1]विविध विमलगुणरत्नसंपा[प]दुद्भासितसकलदि स्मुखे परित्राताश[-]षसपक्ष[ मह ]महीभृति २ सततमविलचितावधौ स्थैर्यगा[ - ]भि[ भी य॑ लावण्यवति महासत्वतयात्[F] दुरवगाहे गुर्जरनृपति दशमह[]दधा[ धौ ]श्रीसहजन्माकृ३ ष्णहृदयाहितास्पदः कौस्तुभमणिरिव विमलयशोदीधितिनिकरविनिहतकलिति मिरनिचयः सत्पक्षो वैनतेयइवाकृष्टशत्रु४ नागकुलसंततिरुत्पत्तित एव दिनकरचरणकमलप्रणामापजीवाशेषदुरित निवहः सामन्तदद्दः । प्रतिदिनमपेतशङ्कं येन५ स्थितमचलगुणनिकरकेसरिविराजितवपुषा विनिहतारिगजकुम्भविगलितमुक्ता फलो[ल ]च्छलपणी[ की पूर्ण विमलयशोवितानेन रूपानु६ रूपं सत्त्वमुद्वहताकेसरिकिशोरकेणेवोपरि क्षितिभृतां ।यंचा तिमलिनकलियुगति मिरचन्द्रमसमनुदिवसमन्य[ न्यस्पर्द्धया वा७ ययुः कलासमूहादयो गुणा विक्रमानीतमदविलासालसगतयोरातिगजघटाः प्रम दाश्च[ 1 ]यस्यचाविरतदान८ प्रवाहप्रीणितार्थिमधुकरकुलस्य रुचिरकीर्तिवशासहायम्य सततमस्खलितपदं प्रस. रतः सद्वंशाहितशोभागौरवस्य ९ भद्रमतंगजस्यवे करबाट विनिहतक्षितिभूदुन्नततनूरुहस्यरेवानिर्झरसलिलप्रपात मधुरनिनदस्य भगद्भ१० वाः समुन्नतपयोधराहितचियो दयिता इव मुदे विन्ध्यनगोपत्यका। यश्चोपमीयते शशिनि सौम्यत्ववैमल्यशोभाकला११ भिन्न कलङ्केन श्रीनिकेतशोभासमुदयाधः कृतकुलकण्टकतया कमलाकरे न पर जन्मवयासत्वोत्साहविक्रमैमृगाधिरा१२ जेन क्रू[ क्रू ]राशयतया लावण्णास्थैर्य ग[1] भीर्य्यस्थित्यनुपालनतयामहोदधो [धौ ]नव्यालाश्रयतया सत्कटकसमुन्नताविद्याधरावा. १३ सतया हिम मा चले न खष[शे परिवारतया । यस्य च सद्भा[ भोग; शे पोरगस्येव विमलकिरणमणिशताविष्कृतगौरवः सकलजगत्साधार१४ णो[। यस्य प्रकाश्यते सत्कलं शीलेन प्रभुत्वमाज्ञया शस्त्रमराति प्रणिपातेन कोपो निग्रहेण प्रसादः प्रदानैर्धम्मा देवद्विजांतिगु म. ११० पति १३ मा ५१ वष वायन . प्रा. डॉसनना स्यनाथा सुधारेलुयन में सीधु. २ भाडि भने पति २७ मा द्विज' मा 'आ'नाबाट जना ना ली. साये અર્વ રીતે જોડે છે. For Private And Personal Use Only

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