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मरु - गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
सुर मुख देखि अझै पद पावहिं करहिं साधुरिसि सेवा । " इनकी एक अन्य रचना 'दानशीलभावना' भी हो सकती है जिसकी प्रति दिग० जैनमन्दिर बीसपंथी द्योसा में सुरक्षित है । "
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श्री कामता प्रसाद जैन का विचार है, कि महेन्द्रसेन के शिष्य भगवतीदास या भगौतीदास एक ही हैं । ये ही बनारसीदास के पंच सखाओं में थे जिनमें रूपचंद, चतुर्भुज, भगौतीदास, कुँवरपाल और धर्मदास की गणना है, यथा
यथा रूपचंद पंडित प्रथम, दुतीय चतुर्भुज नाम, तृतीय भगौतीदासनर कौरपाल गुन धाम । धर्मदास ए पंचजन मिलि वैसे इकठौर, परमारथ चरचा करें इन्हके कथा न और ।
श्री कामताप्रसाद जी लिखते हैं "भगवती दास जी जैन साहित्य में प्रसिद्ध कवि भैया भगवतीदास से भिन्न व्यक्ति हैं और यह वह कवि प्रतीत होते हैं जो मुनि महेन्द्रसेन के शिष्य थे और सहजादिपुर के रहने वाले अग्रवाल वैश्य थे । ४
भद्रसेन - आप खरतरगच्छीय कवि थे । जब जिनराज सूरि ने शत्रुजंय पर प्रतिष्ठा की थी उस समय वहाँ गुणविनय आदि के साथ भद्रसेन के भी उपस्थित रहने की सूचना मिलती है ।" आपकी रचना 'चंदन मलयागिरि चौपाई' १८४ पद्यों की एक सुन्दर, लोककथा पर आधारित कृति है । यह पर्याप्त लोकप्रिय भी है। इसकी अनेक प्रतियाँ राजस्थान एवं गुजरात के शास्त्रभंडारों में उपलब्ध हैं जिनमें से कई सचित्र भी हैं । सं० १६७५ के आस-पास इसकी रचना हुई होगी । इसमें कुसुमपुर के राजा चंदन और शीलवती रानी मलयगिरी
१. डॉ० कस्तूर चन्द कासलीवाल - राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डार की ग्रन्थ सूची भाम ५ पृ० ३९-११४
२. वही
३. श्री कामता प्रसाद जैन - हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास पृ०
११३
४. वही
५. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ५९६-९८ ( प्रथम संस्करण )
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