Book Title: Hindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Shitikanth Mishr
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 626
________________ अज्ञात कवियों द्वारा रचित कृतियाँ साह चोखा कहणथा कीयउ, सेवक जननि सिवसुख दीयउ ।' श्रीदत्त रास ( २३० कड़ी सं० १६४१, धनतेरस ) आदि मंगल मंगल करण सिद्धायग अ वीरह वीर तणी रखवालि, के सुवचन संपद दायका ओ सुन्दर रूपनी आलिके, मंगलकरण सिद्धायका अ 1 रचनाकाल - संवत शांतिमित एक तालइ रचिउ, मास दीपालिका द्वितीय पक्ष, दिवसि धनतेरस पूरण मनरसि वार ते वाणीउ जाणि दक्ष । अन्त श्री दत्त चरितवर भाव स्यू रचित थे, खचित वैराग्य रयणे सुसारं, जे सुणइ नारिनर मन करी ततपर, अजर अमर लहि पद उदारं । २ श्रीदत्त के चरित्र के दृष्टान्त द्वारा इस रचना में वैराग्य का भाव पुष्ट किया गया है । सदयवच्छवीर चरित्र (सं० १६५२ से पूर्व ) हर्षवर्द्धन गणि ने संस्कृत में 'सदयवत्स' कथा लिखी थी । यह उसी पर आधारित एक मरुगुर्जर रचना है । इसकी हस्त प्रति सं० १६५२ की लिखित उपलब्ध है । अतः उससे पूर्व किसी समय लिखी गई होगी परन्तु रचनाकाल निश्चित नहीं है । ६०७ आदित्यवार कथा (१५८ कड़ी ) कवि संभवतः दिगम्बर रहा होगा । इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं SANG १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ७२९-३० (प्रथम संस्करण ) भाग २ पृ० १५४-५५ (द्वितीय संस्करण ) २. वही भाग ३ पृ० ७६४ (प्रथम संस्करण) और भाग २ पृ० १९१-१९२ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International ३. वही भाग १ पृ० ४८१ (प्रथम संस्करण) और भाग ३ पृ० ११८ (द्वितीय संस्करण) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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